Online listen Hindi poem : Koi Gaata Main So Jaata - Harivansh Rai Bachchan


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Koi Gaata Main So Jaata listen    को‌ई गाता मैं सो जाता यहाँ सुने







कोई गाता, मैं सो जाता!
संसृति के विस्तृत सागर पर, सपनों की नौका के अंदर
सुख-दुख की लहरों पर उठ-गिर बहता जाता मैं सो जाता!
                    कोई गाता मैं सो जाता!

आँखों में भरकर प्यार अमर,आशीष हथेली में भरकर
कोई मेरा सिर गोदी में रख सहलाता, मैं सो जाता!
               कोई गाता मैं सो जाता!

मेरे जीवन का खारा जल,मेरे जीवन का हालाहल
कोई अपने स्वर में मधुमय कर बरसाता, मैं सो जाता!
                   कोई गाता मैं सो जाता! 


koi gaata main so jaata

sansriti ke vistrit saagar par, sapanon ki nauka ke andar
dukh sukh ki laharon par uth gir, bahata jaata, main so jaata
koi gaata main so jaata
aankho mein lekar pyaar amar, aashish hatheli mein bhar kar
koi mera sar godi mein rakh, sahalaata, main so jaata
koi gaata main so jaata
mere jivan ka khaaraa jal, mere jivan ka haalaahal
koi apane svar mein madumay kar, doharaata, main so jaata
koi gaata main so jaata 



Truth of news : समाचारों का सच

बचपन में सुना था की कलम में वो शक्ति है जो साता की शक्तिशाली गलियारों को भी हिला शक्ति है.कुछ दिनों से में सोच रहा था की सच में ऐसा है? मै बहुत दिनों का इतिहास तो नहीं जानता पर मेरे जानकारी में ऐसा कोई उदहारण नहीं है जहा पर इस कलम ने सत्ता के बिरुध कुछ किया हो. हा सत्ता के पक्ष में बहुत सारा अक्षपात अवश्य किया है . बड़ा अजीब लगता है की जब यह भी समाचार मुख्य पृष्ठ पर आने लगे की सचिन तेंदुलकर ने अपनी मोटर कार बेच दी. जब ऎसी भी बाते समाचार बनने लगे तो संदेह होने लगता है की हमारे समाचार पत्र. या समाचार चैनेल वाले लोग सअमाचार को लेकर ज्यादा गंभीर है! क्या वास्तव में वो जनता को सच्चाई बताने के लिए तत्पर है! क्या वास्तव में उनमे इतना साहस है की वो सच बोल सके! मुहे तो कभी नहीं लगा. मुझे वो गहराई कभी नहीं दिखी. सर्वप्रथम अगर हम विषय को लेकर बात करे. उदाहरण के लिए हम हाल में हुए गैस और डीजल के दामो में हुए बढ़ोतरी की बात करे तो हम पाते है की सारे खबरिया चैनेल वाले घूम घूम के लोगो का साक्षात्कार ले रहे थे की कैसे ये बढे दाम उनके जीवन को प्रभावित करेंगे. और लोग भी टीवी पर दिखने के लिए अनाप सनाप बके जा रहे थे. कुछ को चिंता रही की वो चिप्स नहीं खा पायेंगे तू कुछ मरे जा रहे थे की 'ब्यूटी पअर्लर' में उनका आना कम हो जायेगा . खैर जो भी हो. होना तो ये  चाहिए की ये चैनल वाले अपनी ऊर्जा इस पर खर्च करे की ये दाम क्यों बढे है या फिर ये बढ़ोतरी क्या अव्श्यव्म्भावी थी या कुछ और पते भी थे . पर इन बातो को पता लगाने या इन पर चर्चा करने के लिए समय और ज्ञान दोनों की आवशयकता होती है पर इन दोनों चीजों का घोर आभाव है इन लोगो के पास. अगर ऊपर दिए हुए चित्र को देखे तो आपको पता लगेगा की ये भारत बर्ष के 'सबसे तेज' समाचार चैनेल से लिया गया है. अब सबसे तेज होने के चक्कर में ये लोग इतना भी भूल गए की भारत-बेस्तइंडीज का दूसरा टेस्ट मैच २८ जून से खेला जाएगा न की २८ जुलाई से. तो अगर गुडवत्ता और तेजी में किसी के एक चुनना हो तो उन्होंने तेजी को चुना जिससे उनका हो सके भला हो पर जनता का चुना लगाना तय है. 
अब थोड़ी भाषा की बात हो जाय. छोटे में रेडियो के समाचार वाचको के बोलने के और  शब्दों की नक़ल किया करते थे हम. पर आजकल तो पता ही नहीं चलता ही की हम समाचार सुन रहे है या फिर मंच पर नाटक चल रहा है! एक समाचार वाचक पर एक चुटकुला सुना है मैंने. समाचार वाचक परेशान हो अपने मित्र से कहता है 'यार इस नौकरी ने मुझे परेशान कर रखा है. घर पे पत्नी पुछती है की सब्जी कैसी बनी है तो मुह से निकल जाता है 'सनसनीखेज''. मुझे लगता है की ये चुटकुला ही अपने आप में सब कह जाता है. विचारो का निर्माण करने वाली कलम आज खुद दिग्भ्रमित हो के घुमे जा रही है.



Ek Saadhu Ki Maut : एक साधू की मौत

अभी चार बाबा लोग चर्चे में है. हालाकि बाबा हमेशा से ही चर्चे में रहे है  पर इस बार कारण अलग अलग है. एक बाबा जो सबसे चर्चे में है उनका नाम है बाबा रामदेव. थे बेचारे योगी. सब ठीक ठाक ही चल रहा था. सब सुन्दर सब पवित्र. सारे देश के लोग खुश सारे देश के लोग स्वस्थ. बाबा से किसी का कोई नुकशान न था इस लिए बाबा पे कोई इलज़ाम भी न था. फिर अचानक बाबा को सूझी चलो देश के विकाश के लिए कुछ करेंगे. लोग तो स्वस्थ हो ही रहे है अब समृद्ध भी हो जायेंगे. पर बाबा को पता न था की कीचड के ये खेल बहुत कठिन होते है. आप कुछ कीचड फेकोगे  तो लेना भी पडता है कुछ. और तब तो और ज्यादा लेना पडता है जब बेश्यालय में जाके कीर्तन करना शुरू कर दो. बहुत छोटा था तो मेरे दादाजी मुझे एक मुहावरा कहा करते थे - बैल जैसा हो घास वैसा ही देते है. पर बाबा इस बात को समझ न पाए और लगे बिगड़े बैल को अछा घास  खिलाने. बैल तो बिगडैल  लगा सिंग उठा के मारने. बाबा ने कहा काला धन लाओ बैल ने कहा डंडा  दिखाओ. बाबा इस बार भी एक छोटी चीज़ समझने से चूक गए और वो है जिसकी लाठी उसकी भैस.
         दूसरे बाबा तो हमेशा से चर्चा में रहे है . जब से समझाना शुरू किया तब से वो घुघराले बाल देखते आया हू मै. बाबा तो चले गए गोलोक पर पीछे छोड़ गए ढेर सारा रूपया . और जैसा की अक्सर होता है चेले एक दुसरे का सर फोड़ने लगे की कौन होगा बाबा का असली उत्तराधिकारी..नहीं नहीं आप ऐसा नहीं सोचो की बाबा के ज्ञान के अधिकार की बात हो रही है. यहाँ पर बाबा के धन की बात हो रही है. हालाकि बाबा 'भगवान्' थे वो बोल के भी गए है की मै फिर आऊंगा. पता नहीं ये सहानुभूति के शब्द है या चेतावनी के. पर अभी अभी बाबा का जब घर खोला गया तो पता चला की बाबा के घर में ११.५६ करोड़ रुपये और ९८ किलो सोना और ३०७ किलो चाँदी थी. मै तहरा मंद बुधि आदमी. अब कितना होगा सब मिला के नहीं बता सकता पर इतना जरूर मालूम है की ''गोंड' को भी 'गोल्ड' की जरूरत होती है.
             तीसरे वाले थोड़े भारीभरकम बाबा है. नाम है चंद्रास्वामी. कुछ सालो पहले ये त्रिदेव के रूप में आया करते थे. इनके सहभागी थे- हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री श्री नरसिम्हा राव जी और लखु भाई पाठक. बाबा कुछ सालो से भुगत हो गए थे . चुकी बाबा लोगो का मौसम चल रहा है इस लिए ये बाबा भी आ गए है बाज़ार में.  सर्वोच्च न्यायालय ने बाबा चंद्रास्वामी से कहा है की वो ९ करोड की धनराशि हर्जाने के रूप में जमा करे. कहते है बड़े लोगो की सब बड़ी चीज़ होती है, चाहे वो अच्छाई हो या बुराई . ये बड़ी बात ही बाबा का हर्जाना भी इतना बड़ा है .
  चौथे बाबा और बड़े बेचारे किस्म के बाबा का नाम है स्वामी निगमानंद . मै बेचारा इसलिए कहा कहा की बाबा के चेलो में कोई प्रधानमंत्री या मंत्री का नाम नहीं था नहीं तो बाबा ऐसे असमय सदगति को प्राप्त नहीं होते है . बाबा गंगा मैया को बचाने के लिए आमरण अनशन पे बैठे हुए थे. और भूखे ही मर गए . कौन कहता है की 'जाती न पूछो साधू की '?? अगर बाबा सच में उची जाती (??) के होते तो क्या ऐसे ही व्यर्थ मारे जाते?? क्यों बाबा के चेले अगर मंत्री संत्री होते तो बाबा के संघर्ष को लोग उनके मरने के बाद जानते ?? या बाबा के मरने के बाद भी ऐसे ही चुप्पी रहती जैसे की अभी है?? कभी नहीं. तब हमारा सारा 'सिस्टम'  हिल गया होता. क्यों की बाबा के पास 'वोट' होते और इसी कारण बाबा के आस मंत्री संत्री भी होते. एक साधू मर तो मर गया पर भारत बर्ष के सामने हमारे समाज के सामने प्रश्न उतने ही ज्वलंत है. अखित हमारा समाज  एक मनुष्य का मूल्य कैसे निर्धारित करता है???     . 

Hindi poem mp3 Download : Jo tum aa jate ek bar : Mahadevi Verma जो तुम आ जाते एक बार : महादेवी वर्मा


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                                                                 जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करुणा कितने संदेश, पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार, अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार, जो तुम आ जाते एक बार

Jo tum aa jate ek bar
Kitni karuna kitne sandesh, Path me bichh jate ban jate parag
Gata prano ka tar tar, Anurag bhara unmad rag
Aansu lete we pad pakhar, Jo tum aa jate ek bar


हँस उठते पल में आर्द्र नयन, धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत, लुट जाता चिर-संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार, जो तुम आ जाते एक बार



Hansh uthte pal me we aardra nayan, Dhul jata hotho se vishad
Chha jata jeevan me vasant, Lut jata chir sanchit chirag
Aankhe deti sarvaswa var, Jo tum aa jate ek bar


अन्ना हजारे और बाबा रामदेव से भय क्यों ?? Who is afraid of baba anna hajaare and raamdev??

हिटलर की एक प्रसिद्ध कथन है 
 तुम एक बड़ा झूठ बोलो, और उसे बार बार बोलो. लोग उसपे बिस्वाश करना शुरू कर देंगे 
और ये काम और भी आसान हो जाता है जब आपके सरकारी मशीनरी हो जो आपके इस झूठ को जनता के सामने बार बार लाये, बार बार दोहराए . कुछ इन्ही बातो पे शायद हमारी सरकार बिस्वाश करना शुरू क्रर  दी है. सरकार अब समझ गयी है की लाठी से काम नहीं चलने वाला है. संभवतः सरकार को आगे से ही यह सच्चाई पता थी. लाठी तो सिर्फ इसलिए चली थी की बाबा और उनके चेले दिल्ली  से भगाए जा सके. क्योकि दिल्ली उनको ज्यादा 'कवरेज़ ' देने वाली थी और सरकार को ज्यादा परेशानी. इसलिए सरकार बोली बाबा आप हरिद्वार में  भूखे  बैठो और दिल्ली में हमें हमारे गोरखधंधे को चलाने दो. 
   झूठ प्रचार में सबसे ज्यादा सक्रिय है हमारे दिग्विजय सिंह जी और कपिल सिब्बल साहब. दोनों ने अपने मंत्रित्व काल में कितना काम किया है ये सब जानते है.  दिग्गी राजा को अचानक ज्ञान प्राप्त हुआ की रामदेव ठग है. मुझे बहुत आश्चर्य हुआ की उसी ठग की अगवानी में भारत सरकार के ढेर सारे मंत्री अगवानी में हवाई अड्डे कैसे पहुच गए?? ये ज्ञान उन्हें कैसे प्राप्त हुआ ये जानने लायक है. और आखिर में यूपीए सरकार के मंत्रियों, सांसदों ने भ्रष्टाचार के जो उच्च मापदंड स्थापित किए हैं, उनके हिसाब से बाबा के कुछ करोड़ को देखते हुए, बाबा को ठग नहीं, फ़कत एक जेबकतरा जैसा कुछ कहा जा सकता है। सबसे अजीब बात है की सरकार की तरफ से कोई भी बात मुद्दे पे नहीं हुई है अभीतक. एक बार भी किसी ने नहीं कहा की इस मुद्दे को हम ऐसे हल करेंगे. क्योकि हमारी सरकार के पास इसका कोई हल नहीं है और नहीं हल करने की इच्छा शक्ति. अचानक दिग्गी राजा को एक और ज्ञान प्राप्त हुआ की आचार्य बाल कृष्ण एक अपराधी है और उसके पास कई देशो के पासपोर्ट है . अगर ये सच भी है तो आप जानते हुए चुप क्यों रहे है सरकार ने कोई कार्यबाई क्यों नहीं की?? बाबा रामदेव ढोंगी हो गए क्योकि उनके पास ११०० करोड़ रुपये है!! पैसे होने में कब बुराई थी?? और ऐसे पैसे में तो कोई भी बुराई नहीं है जो जनता के लिए ही जा रहे हो?? और मुझे नहीं लगता की ये पैसे कलमाड़ी और कम्पनी के तरीके से कमाए गए है. दरअसल बाबा रामदेव एक योग शिक्षक है. और उनके जो भो अनुयायी है वो किसी बिश्वाश के कारण नहीं है. वो बाबा रामदेव को इसलिए पसंद नहीं करते की वो कभी चमत्कार करते है. वो इसलिए नहीं रामदेव में बिस्वास करते की उनके मुह से शिवलिंग निकालता है. लोग रामदेव को इसलिए बिश्वास करते है की उनके बताये रास्ते से लोगो को लाभ होता है. पर सरकार जनता की कमजोरियों को जानती है. सरकार जानती है की जनता सब समय बाबाओ को नंगे बुखे देखना चाहती है. ऐसे में ११०० करोड़ वाले बाबा के प्रति जनता के मन में संदेह पैदा करना बहुत ही आसान होगा अपेक्षाकृत काले पैसे को लाने के. इसलिए सरकार सब समय कोशिश कर रही है ध्यान मुद्दे से हते. इसके लिए आप किसी को ठग बोलो, चोर बोलो, चाहे कुछ बोलो पर बार बार बोलो. आखिर में वही काम में आएगा
  अंत में, शोले में १०-१० कोस तक जब कोई बच्चा रोता था तब माँ कहती थी बेटा सो जा नहीं तो गब्बर आ जाएगा और भारत में जब भी कोई पते की बात करता है तो हमारी सरकार कहती है जनता से आप लोग अपना कान बंद कर ले ये आर एस एस का आदमी है. ऐसे ही दिन पर दिन अपने बच्चे को माँ सुलाती रही है और ऐसे ही बरसो पे बरसो सरकार सही बातो से हम भटकाती रही है. इसलिए सोचे और फिर सोचे......और बात मुद्दे पे ही हो तो काम की है नहीं तो बस 'टाइम-पास' है


Sorry! I am not sad about makbool fida husain क्षमा करे! मै मकबूल फ़िदा हुसैन के लिए दुखी नहीं हु

मुझे बहुत दुःख होता है बताते हुए की मै 'मुस्लिम' चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसैन का मुझे कोई दुःख नहीं है. यहाँ पर मैंने मुस्लिम शब्द का प्रयोग जान बुझ के किया है क्योकि उनका कोई भी काम इस दायरे से बाहर नहीं निकल पाया. हमारे भारतीय (क्या सच में थे वो ?) "पिकासो" कभी भी इस धर्म के शीशे से बाहर नहीं निकल पाए.  हालाकि मुझे चित्रकारी का कोई ज्ञान नहीं है पर इनको देख कर अवश्य जान गया की पैसा कितनी बड़ी चीज होती है. अगर आपका का काम बिकता है तो कोई अंतर नहीं पड़ता की आप दूसरो की भावनाओ का कोई सम्मान करते है की नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता की आप दूसरो के साथ कितना बुरा बर्ताव कर सकते है. 
मकबूल साहब मरे तो अचानक देखा हमारे संमाज के प्रतिनिधि अचानक दुखी हो गए. सबके सब गहरे शोक में डूब गए , एक अपूर्णीय क्षति हो गयी भारतीय कला की (कम से कम सब लोग ऐसा ही स्वांग रचा रहे थे ). फिर मै सोचना शुरू किया की प्रथम बार कब मैंने मकबूल साहब का नाम सुना था ! फिर याद आया की मै उनकी उनके चित्रकारी के लिए नहीं 'हम आपके है कौन' की माधुरी दीक्षित के लिए जानता हु. फिर मकबूल साहब इतने दीवाने हुए की उनका नाम हुआ "माधुरी फ़िदा हुसैन ". बड़े लोग के सब काम बड़े. अगर मै उस उम्र में कुछ वैसा करू तो घोर पाप होगा पर मकबूल साहब करे तो वो उनकी 'प्रेरणा' होगी. शाहजहा ने मुमताज के लिए ताजमहल बनाया और मकबूल साहब ने गजगामिनी. अब तक तो ठीक था पर हुसैन साहब का अगला काम इससे से भी अछा निकला. हुसैन साहब ने हिन्दुओ के देवी देवताओ के कुछ चित्र बनाये . कुछ लोगो ने इसका बिरोध किया. वो बिरोध इतना ही जोरदार था की हुसैन साहब को नागरिकता  छोड़नी पड़ी भारत की. ऐसे में कुछ  भाइयो ने दूकान चलानी शुरू की. हुसैन साहब का ये काम उन्हें बोलने की स्वतन्त्रता लगी . उन्हें लगा की हुसैन साहब पर किया हुआ हमला लोकतंत्र पर हमला है. पर इन सब के बावजूद हुसैन साहब चुप रहे. ये वाही हुसैन साहब है जिन्होंने एक फिल्म बनाई थे "मीनाक्षी:डी टेल ऑफ़ थ्री सिटिज " .. ये उन दिनों की बात है जब हुसैन साहब तब्बू के दीवाने थे. मीनाक्षी:डी टेल ऑफ़ थ्री सिटिजके एक कव्वाली "नूर उन अला नूर " पर कुछ मुस्लिम संमाज के प्रतिनिधियों ने आपत्ति की और फिल्म अपने तीसरे दिन में ही सिनेमाघरों से हटा ली गयी. मुझे आज तक ये नहीं समझ में आया की हुसैन साहब इतने उदार हिन्दू भावनाओं के प्रति  क्यों नहीं हो सके. और अगर लार विल्क्स की इसलिए निंदा की जा सकती है की उन्होंने मोहम्मद साहब को गलत तरीके से प्रदर्शित किया है तो मकबूल फ़िदा हुसैन अनिन्दनीय कैसे हो सकते है???
हुसैन साहब ने एक और चित्र बनाया था महात्मा  गाँधी , कार्ल  मार्क्स , अल्बर्ट  इन्स्तेइन  और हिटलर का. सारे लोग कपडे में और हिटलर भाई नंगे . तर्क था की वो हिटलर को घृणा करते है इसलिए उसे नंगा दिखाया है. अब आप खुद भी सोच सकते है की हुसैन साहब ने हिन्दुओ के आश्थाओ से कितना प्रेम करते है की सारी उम्र उनको नंगा दिखाने में कटा दी. दादू मरे नहीं की लोगो ने दूकान फिर खोल दी. इस बार मांग दी उनका क्रिया कर्म तो भारत की पवित्र भूमि में ही होना चाहिए  जैसे उनके शव के राख के बिना कितना अधुरा है भारत बर्ष . आश्चर्य होता है की ये वाही सरकार है और ये वाही लोग है जो आधी रात को बूढ़े बचो औरतो पे लाठी बरसाते है. मुझे आश्चर्य होता की भारत का संबिधान सबके लिए एक है और सब एक अधिकार रखते है !!!!!

सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं

मै बहुत छोटे दिमाग वाला आदमी हु जो बहुत कम दुरी की बाते सोचता है....या यु कहे की बहुत कम बार सोचने का दुस्साहस करता है. मै पहले भी कह चूका हु की भ्रस्ताचार हमारे बिचारो में घुस  चूका है. अब हम भ्रस्ताचार की जीवन शैली जी रहे है इसमे आप  धरना करके और उपवास करके कुछ नहीं कर  सकते . इसमें आप की सरकार बिशेष का भी दोष नहीं दे सकते. ये सब हमारे जीवनशैली और दृष्टिकोण का दोष है. हम सभी चिल्ला रहे है इसलिए नहीं की कोई क्यों लुट रहा है देश को बल्कि की इसलिए की हम इस लूट के हिस्सा हम क्यों नहीं है ? ऐसे में धरना या उपवास या फिर कोई भी नियम-कानून कुछ नहीं कर सकता क्योकि भ्रस्ताचार का बिनाश हमसे शुरू होता है किसी सरकार से नहीं. तो होना तो ये चाहिए था की रामदेव बाबा या अन्ना बाबा पहले हमारे जीवनशैली में सुधार लाते फिर सारी चीज़े अपने आप बदल जाती. कबीर बाबा हजारो बर्ष आगे ही कह गए है की . बड़ा अजीब लगता है की सरकार के तारणहार बाबा रामदेव की संपत्ति पर प्रश्न उठाए जा रहे है जब की उनको पता है की बाबा सारे तरह के जाचो में सहयोग देने को तैयार है पर यही तारणहार श्री करुणनिधि जी के पूरा खानदान द्वारा किये गए लूट को लेकर काम में तेल दाल लेते है. बाह रे मेरी प्यारी, इमानदार जनता की सरकार !! अगर किसी लोकतान्त्रिक सर्कार का किसी शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बिरुद्ध यही ब्यवहार ठीक है तो फिर जलियावाला बाग़ में जो हुआ था उसमे बुरा क्या था ?? 
अन्दर का पट खोल के, बाहर का पट खोल

खैर आपने अपने तरीके है और अपने अपने धंधे. पर मुझे इसका अफसोश नहीं है की हमारे बाबाओ ने क्या किया अफसोश इस बात का है की हमारे सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े पुरोधाओ ने क्या किया?? रात को १२ बजे आप हजारो के बीद पर लाठी बरसाते है ..वो भी ऐसी भीड़ जो आपसे इस बात की शांति पूर्ण ढंग से मांग कर रही है की भारत बर्ष का काला धन जो बाहर पडा हुआ है उसे आप वापस लाइए. इस मांग में मुझे तो कोई बुराई नजर नहीं आयी. इसके बदले में हमारी सरकार ने क्या किया?? पहले तो अपने हनुमानो को भेजा की जाओ उनको समझाओ . जब बात नहीं बनी तो फिर ब्याक्तिगत गाली गलुज पे उतर आये.और जब कोई भी शस्त्र जब काम नहीं किया तो लाठी लेके दौड़े. मुझे वास्तव में आश्चर्य होता है की ये वाही लोग है जो नक्सलवादियो, काश्मीर और उत्तर पूर्व के आतंकवादियों के पैरो पे गिडगिडाए  फिरते है की शास्त्र छोड़ो आओ हम बाते करते है तुम्हारी मांगो को लेकर. मै अभी तक नहीं समझ पाया की सरकार इतना अधीर क्यों हो गयी या फिर इतना लाचार क्यों हो गयी की उसको रात के १२ बजे लाठी उठाना पडा?? अखित सरकार को किसका भय था ?? और  इन सबमे खतरनाक है हमरे परम प्रिय मनमोहन सिंह और हमारे युवराज राहुल गाँधी की चुप्पी. अभी कुछ दिन पहले जिस तरह से यूराज ने नॉएडा के गाव में हुई घटनाओं पर तत्परता दिखाई थी अगर वाही तत्परता यहाँ दिखाते तो कितना अच्छा होता. कितना अच्छा होता की हमारे बिद्वान प्रधान मंत्री ये जनता को बतला सकते की आधी रात को ये करवाई इतनी अनिवार्य क्यों हो गयी थी. और ये अनिवार्यता और तत्परता हमारे आतंकवादी संगठनो के बिरुद्ध क्यों नहीं दिखाती सरकार ?? अगर बाबा रामदेव ठग है तो सरकार एक ठग से इतनी डरी हुई क्यों है ??

Andheri Raat Main Deepak Jalaye Kaun Baitha Hai : Harivansh Rai Bachchan अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है : हरिवंश राय बच्चन

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Andheri Raat Main Deepak Jalaye Kaun Baitha Hai : Harivansh Rai Bachchan

अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है : हरिवंश राय बच्चन


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अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है हाँ सुने   

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             अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

                उठी ऐसी घटा नभ में, छिपे सब चांद औ' तारे,
                उठा तूफान वह नभ में, गए बुझ दीप भी सारे,
                मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है?
                अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

                गगन में गर्व से उठउठ, गगन में गर्व से घिरघिर,
                गरज कहती घटाएँ हैं, नहीं होगा उजाला फिर,
                मगर चिर ज्योति में निष्ठा जमाए कौन बैठा है?
                 अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

                तिमिर के राज का ऐसा, कठिन आतंक छाया है,
                उठा जो शीश सकते थे, उन्होनें सिर झुकाया है,
                 मगर विद्रोह की ज्वाला जलाए कौन बैठा है?
                  अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

                प्रलय का सब समां बांधे, प्रलय की रात है छाई,
                विनाशक शक्तियों की इस, तिमिर के बीच बन आई,
                मगर निर्माण में आशा दृढ़ाए कौन बैठा है?
                   अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

                प्रभंजन, मेघ दामिनी ने, न क्या तोड़ा, न क्या फोड़ा,
                धरा के और नभ के बीच, कुछ साबित नहीं छोड़ा,
                      मगर विश्वास को अपने बचाए कौन बैठा है?
                    अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

                प्रलय की रात में सोचे, प्रणय की बात क्या कोई,
                मगर पड़ प्रेम बंधन में, समझ किसने नहीं खोई,
                           किसी के पथ में पलकें बिछाए कौन बैठा है?
                              अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?


Andheri Raat Main Deepak Jalaye Kaun Baitha Hai?

Uthi Aisi Ghata Nabh me, Chhipe Sab Chand aao Taare,
Utha Wo Toofan Nabh me, Bujh Gaye Deep bhi Saare,
Magar Is raat me bhi lao lagaye kaun baitha hai?
Andheri Raat Main Deepak Jalaye Kaun Baitha Hai?

Gagan me Garv se Uth Uth, Gagan me Garv se Ghir Ghir,
Garaj Kehti Ghataye hain, Nahin hoga Ujaala fir,
Magar Chir Jyoti me Nishtha Jamaye kaun Baitha hai?
Andheri Raat Main Deepak Jalaye Kaun Baitha Hai?

Timir ke Rajya ka aisa, Kathin Aatank Chhaya hai,
Utha jo Sheesh sakte the, Unhone sir jhukaaya hai,
Magar vidroh ki jwaala kaun jalaye baitha hai?
Andheri Raat Main Deepak Jalaye Kaun Baitha Hai?

Pralay ka sab samaa baandhe, Pralay ki raat hai chhayi,
Vinashak shaktiyon ki Is, Timir ke Beech ban Aayi,
Magar Nirmaan ki Aasha Dhridhaaye kaun Baitha hai?
Andheri Raat Main Deepak Jalaye Kaun Baitha Hai?

Pralay ki Raat ko Soche, Pralay ki Baat kya koi,
Magar Prem Bandhan me, Samajh Kisne nahin khoyi,
Kisi Ke Panth me Palake Bichhaye kaun baitha hai,
Andheri Raat Main Deepak Jalaye Kaun Baitha Hai?

जो बीत गई सो बात गई - हरिवंश राय बच्चन Jo Beet gayi so baat gayi-Harivansh Rai Bachchan

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जो बीत गई सो बात गई  -हरिवंश राय बच्चन     Jo Beet gayi so baat gayi- Harivansh Rai Bachchan



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जो बीत गई सो बात गई हाँ सुने   Listen online  Jo Beet gayi so baat gayi
 

                                 जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा था, माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया, अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले, पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है, जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम, थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया, मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ, मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं, पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है, जो बीत गई सो बात गई


जीवन में मधु का प्याला था, तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया, मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं, गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं, पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है, जो बीत गई सो बात गई


मृदु मिट्टी के बने हुए हैं, मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं, प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर, मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं, वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है, जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ, कब रोता है चिल्लाता है


                               जो बीत गई सो बात गई


Jo Beet Gayi So Baat Gayi
 
Jeevan Main Ek Sitara Tha, Maana Vah Behad Pyara Tha
Vah Doob Gaya To Doob Gaya, Ambar Kay Aanan Ko Dekho
Kitne Iskay Taare Toote; Kitne Iskay Pyare Choote
Jo Choot Gaye Fir Kahan Mile, Par Bolo Toote Taaron Par
Kab Ambar Shok Manata Hai, Jo Beet Gayi So Baat Gayi


Jeevan Main Vah Tha Ek Kusum, They Us Par Nitya Nichavar Tum
Vah Sookh Gaya TO Sookh Gaya, Madhuvan Ki Chaati Ko Dekho
Sookhi Kitni Iski Kaliyan, Murjhaayi Kitni ballriyan
Jo Murjhayi Woh Fir Kahan Khili, Par Bolo Sookhe Phoolon Par
Kab Madhuban Shor Machata hai, Jo Beet Gayi So Bat Gayi


jeevan Main Madhu Ka Pyala Tha, Tumnay Tan Man De Daala Tha
Wah Toot Gaya To Toot Gaya, Madiralya Kay Aangan Ko Dekho
Kitne Pyale Hil Jaate Hain, Gir Mitti Main Mil Jaate Hain
Jo Girte Hain Kab Uthte Hain, Par Bolo Toote Pyalo Par
Kab Madiralaya Pachtata Hai, Jo Beet Gayi So Baat Gayi


Mridu Mitti Kay Hain Bane Hue, Madhu Ghoot Phoota Hi Kartay Hain
Laghu Jeevan Lekar Aaye Hain, Pyale Toota Hi Karte Hain
Fir Bhi Madiralaya Kay Andar, Madhu Kay Ghat Hai Madhu Pyale Hain
Jo Madakta Kay Maare Hain, Vey Madhu Loota Hi Kartay Hain
Va Kachcha Peene Wala Hai, Jiski Mamta Ghat Pyalon Par
Jo Sachchey Madhu Sey Jala Hua, Kab Rota Hai Chillata Hai
 
Jo Beet Gayi So Baat Gayi


ENGLISH TRANSLATION 
  
That which is past, is gone.

There was a star in life, agreed, it was much loved
when it sank, it did sink. Look at the sky’s vastness,
so many stars have broken away, so many loved ones it has lost
the lost ones, were they ever found? But tell me, for the broken stars
does the sky ever grieve? That which is past, is gone.


There was a flower in life, which, I doted everyday on
when it dried, it dried away. Look at the garden’s breast,
dried, many of its saplings have, welted, many of its flowers have
that which welted, did it ever bloom? But tell me, for dried flowers
does the garden create an uproar? That which is past, is gone.


There was a cup of wine in life, which, you gave your heart and soul for
when it broke, it did break. Look at the winehouse’s courtyard
shaken, where many cups are, fall, and merge with the ground
that which fall, do they ever rise? But tell me, for broken cups
does the winehouse ever regret? That which is past, is gone.


Soft mud, we are made of, wine drops do tend to fall.
A short life, we have come with, winecups do tend to break.
Yet, inside the winehouse there is a winepot, there are winecups.
Those, struck by intoxication, do splurge away on the wine.
He’s a raw drinker, whose affection escapes no cup,
one who has burnt from true wine, does he ever shout, or scream?
                        That which is past, is gone.

मै हु उनके साथ खड़ी जो -हरिवंश राय बच्चन MAIN HOON UNKE SAATH KHADI JO- Harivansh Rai Bachchan


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मै हु उनके साथ खड़ी जो -हरिवंश राय बच्चन     MAIN HOON UNKE SAATH KHADI JO- Harivansh Rai Bachchan


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मै हु उनके साथ खड़ी हाँ सुने   Listen online  MAIN HOON UNKE SAATH KHADI JO


कभी नहीं जो ताज सकते है, अपने न्यायोचित अधिकार,
कभी नहीं जो सह सकते है, शीश नवा कर अत्याचार,
एक अकेले हो या उनके साथ खड़ी हो भरी भीड़,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.


KABHI NAHIN JO TAJ SAKTE HAIN APNA NYAYOCHIT ADHIKAR,
KABHI NAHIN JO SEH SAKTE HAIN SHEESH NAVA KER ATYACHAR,
EK AKELE HON YA UNKE SAATH KHADI HO BHARI BHEED.
MAIN HOON UNKE SAATH KHADI JO SEEDHI RAKHTE APNI REEDH.

निर्भय होकर घोषित करते, जो अपने उदगार विचार,
जिनके जिव्हा पर होता है उनके अंतर का अंगार,
नहीं जिन्हें चुप कर सकते है, आतातयियो की शमसीर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़. 


NIRBHAY HOKAR GHOSIT KARTE JO APNE UDGAR VICHAR
JINKE JIVVAH PAR HOTA HAI UNKE ANTAR KA ANGAR
NAHI JINHE CHUP KAR SAKTI HAI AAT TAHIYO KI SHAMSHEER
MAIN HOON UNKE SAATH KHADI JO SEEDHI RAKHTE APNI REEDH.

नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता,
ऊचे से ऊचे सपनो को देते रहते जो न्योता,
दूर देखते जिनके पैनी आँख भविष्यत्  का तमाचिर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.

NAHI JOOKA KARTE JO DUNIYA SE KARNE KO SAMJHAUTA
UNCHE SE UNCHE SAPNO KO DETE REHTE JO NEUTA
DOOR DEKTE JINKE PAINI AANKH BHAVISHYAT KA TAMCHEER
MAIN HOON UNKE SAATH KHADI JO SEEDHI RAKHTE APNI REEDH.

 जो अपने कंधो से पर्वत से बढ़ टक्कर लेते है,
पथ के बढ़ो को जिनके पाओ चुनौती देते है,
जिनको बांध नहीं सकती है लोहे की बेडी जंजीर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.  

JO APNE KANDHO SE PARVAT SE BAADH TAKKAR LETE HAIN
PATH KI BADHAON KO JINKE PAON CHUNAUTI DETE HAIN
JINKO BAANDH NAHI SAKTI HAI LOHE KI BEEDI JANJEER
MAIN HOON UNKE SAATH KHADI JO SEEDHI RAKHTE APNI REEDH.

 जो चलते है अपने छप्पर के ऊपर लुका धर कर, 
हर जीत का सौदा कटे जो प्राणों की बाजी पर,  
कूप उद्ददे में नहीं पलट कर  जो फिर ताका करते तीर,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.  


JO CHALTE HAI APNE CHAPPAR KE UPAR LUKA DHAR KAR
HAR JEET KA SAUDA KARTE JO PRANO KI BAZEE PAR
KOOP UDDADE MEIN NAHI PALAT KAR JO PHIR TAKA KARTE TEER
MAIN HOON UNKE SAATH KHADI JO SEEDHI RAKHTE APNI REEDH.

जिनको ये अवकाश नहीं है देखे कब तारे अनुकूल, 
जिनके ये परवाह नहीं है कब भद्र कब दिक्शूल, 
जिनके हाथो की चाबुक से चलती है उनकी तक़दीर ,
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़.  

JINKO YEH AVKASH NAHIN HAI DEKHEN KAB TAARE ANUKOOL,
JINKO YEH PARVAH NAHIN HAI KAB TAK BHADRA, KAB DIKSHOOL,
JINKE HAATHON KI CHABUK SE CHALTI HAI UNKI TAQDEER,
MAIN HOON UNKE SAATH KHADI JO SEEDHI RAKHTE APNI REEDH

तुम हो कैन कहो जो मुझसे सही गलत पर्थ लोटो जान,  
सोच सोच कर पुच पुच कर बोलो कब चालता तूफ़ान, 
सरथ पर्थ वोह है जिसपर अपनी चलती ताने जाते वीर , 
मै हु उनके साथ खड़ी जो, सीधी रखते अपने रीढ़. 


TUM HO KAUN KAHO JO MUJHSE SAHI GALAT PERTH LOTO JAAN
SOOCH SOOCH KAR POOCH POOCH KAR BOLO KAB CHALTA TOOFAN
SERTH PERTH WOH HAI JISPAR APNI CHAATI TAANE JAATE VEER
MAIN HOON UNKE SAATH KHADI JO SEEDHI RAKHTE APNI REEDH.



रात आधी खींच कर मेरी हथेली: हरिवंश राय बच्चन Raat Aadhi Kheench Kar Meri Hatheli-Harivansh Rai Bachchan

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रात आधी खींच कर मेरी हथेली: हरिवंश राय बच्चन    Raat Aadhi Kheench Kar Meri Hatheli-Harivansh Rai Bachchan



                                                 रात आधी खींच कर मेरी हथेली यहाँ सुने                
 Listen online Raat Aadhi Kheench Kar Meri 




रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।

फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में, और चारों ओर दुनिया सो रही थी।
तारिकाऐं ही गगन की जानती हैं, जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी।
मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे, अधजगा सा और अधसोया हुआ सा।
रात आधी खींच कर मेरी हथेली, एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।



एक बिजली छू गई सहसा जगा मैं , कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में।
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू, बह रहे थे इस नयन से उस नयन में।
मैं लगा दूँ आग इस संसार में, है प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर।
जानती हो उस समय क्या कर गुज़रने, के लिए था कर दिया तैयार तुमने!
रात आधी खींच कर मेरी हथेली, एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।



प्रात ही की ओर को है रात चलती, औ उजाले में अंधेरा डूब जाता।
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी, खूबियों के साथ परदे को उठाता।
एक चेहरा सा लगा तुमने लिया था, और मैंने था उतारा एक चेहरा।
वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने, पर ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने। 
रात आधी खींच कर मेरी हथेली, एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।


और उतने फ़ासले पर आज तक, सौ यत्न करके भी न आये फिर कभी हम।
फिर न आया वक्त वैसा, फिर न मौका उस तरह का
फिर न लौटा चाँद निर्मम!, और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ।
क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं?, बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने, 
 रात आधी खींच कर मेरी हथेली, एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।





Raat aadhi kheech kar meri hatheli

Ek ungli se likha tha pyar tumne.

Faasla that kuch hamare bistaron mein

Aaur charon aur duniya so rahi thi.

Tarikayein hi gagan ki jaanti hain

Jo dasha dil ki tumhare ho rahi thi.

Main tumhare paas hokar dur tumse

Adhjaga sa aur adhsoya hua sa.

Raat aadhi kheech kar meri hatheli

Ek ungli se likha tha pyar tumne.



Ek bijali chhu gayi sehsa jaga main

Krishna-pakshi chaand nikla tha gagan mein.

Is tarah karvat padi thi tum ki aansu

Bah rahe the is nayan se us nayan mein.

Main laga dun aag is sansaar mein

Hai pyar jisme is tarah asmarth kaatar.

Jaanti ho us samaya kya kar guzarne

Ke liye tha kar diya tayyar tumne.

Raat aadhi kheech kar meri hatheli

Ek ungli se likha tha pyar tumne.

Pratah hi ki aur ko hai raat chalti

O ujaale mein andhera doob jaata.

Manch he poora badalta kaun aisi

Khubiyon ke saath parde ko uthata.

Ek chehra sa laga tumne liya tha

Aur maine tha utara ek chehra.

Vo nisha ka swapn mera tha ki apne

Par gazab ka tha kya adhikaar tumne.

Raat aadhi kheech kar meri hatheli

Ek ungli se likha tha pyar tumne.



Raat aadhi kheech kar meri hatheli

Ek ungli se likha tha pyar tumne.

Aur utne faasle par aaj tak

Sau yatna karke bhi na aaye phir kabhi hum

Phir na aaya waqt vaisa

Phir na mauka us tarah ka

Phir na lauta chaand nirmam.

Aur apni vedana main kya bataun.

Kya nahin ye panktiyan khud bolti hain?

Bujh nahi paya abhi tak us samaya jo

Rakh diya tha haath par angaar tumne.

Raat aadhi kheech kar meri hatheli

Ek ungli se likha tha pyar tumne.


सहनशीलता की सीमा

आदमी और 'और जानवरों' में क्या अंतर है ? अगर ओशो की माने तो आदमी एक मात्र ऐसा जानवर है जो भगवान् के लिए  भी घर बनाता है. अगर मेरी माने तो आदमी एक मात्र ऐसा जानवर है जो बर्तमान की चिंता छोड़ के या तो भविष्य की चिंता में  जीता है या फिर अपने अतीत को सोच के जीता है. भारत ने देश के ५० 'मोस्ट वांटेड' (अगर हिंदी में कहे तो देश के सबसे चहेते  :) ) आतंकवादियों की एक सूचि निकाली है. इसमें सारे चेहरे पहचाने हुए और सूचि में कोई नाम ऐसा नहीं है जो आपको चौका दे . हम सभी जानते है उनको और भारत अपने इन चहेतों का पाने के लिए बहुत बरसो से लायायित है. इसमें कोई बुराई नहीं है. उन्होंने देश्वासिये के साथ बहुत बुरा किया है और एक जिम्मेदार देश को ऐसा बुरा करने वालो को जेल में डालना ही चाहिए. पर पता है मै कभी न चाहूँगा की ये ५० लोग पकडे जाए. हैरानी की कोई बात नहीं है इसमे. मेरे ऐसे सोचने के पीछे एक कारण है. अगर मान इन लीजिये की ये लोग पकड़ लिए गए तो भारत सरकार इनके साथ क्या करेगी ?? क्या आप सोचते है की ये लोग अपने किये का दंड पायेंगे ?? अगर कसाब, अबू सालेम इत्यादि (इत्यादि  इसलिए क्योकि सूचि लम्बी हो जायेगी ) को पकड़ के भी हमारी सरकार बात कर रही है (या पता नहीं अगले कंधार का इंतज़ार कर रही है ??) तो ऐसा आपका बिस्वाश क्यों है की इन भाई जान लोगो को पकड़ के उनको दंड दिया जाएगा . हम संसार में एक मात्र प्राणी है जो हज़ारो बर्ष पहले खो गए डायनासोरो को खोजते है पर बर्तमान में मौजूद प्राणियों का सर्वनाश किये जा रहे है. यह बात हमारे भारत बर्ष के लिए भी सही है. इसलिए ऐसा भ्रम रखना मुर्खता है की भारत बर्ष ऐसे लोगो को दंड देगा जो उनके लोगो का बुरा किया है. सब कोई संयुक्त राज्य अमेरिका तो नहीं हो सकता नहीं. हमारे देश में मनुष्य की जान ही तो सबसे सस्ती है.
हम बहुत कुछ भावनावो के बहाव में करते है. बास्तव है मनुष्य की भावना ही है जो हमसे अछा करवाती है या फिर बुरा . आप इस विडियो को देखे समझ जायेंगे की ये भावना मनुष्य से क्या नहीं करवा सकती है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने जब लादेन को उसके किये की सज़ा दी तो भारत बर्ष भी थोडा उत्तेजित हो गया. हमारे देश के कर्ताओं को भी ध्यान आया की उनका कर्तव्य क्या है !! तब उन्होंने इस सूचि को बाहर कर दिया पर आप इस बहुत गंभीरता  से ना ले. हम ऐसे ही सूचि बहार करते रहेंगे. और अंततः हम उन्हें पकड़ के करेंगे भी क्या. भारतवासियों के करो के पैसे पे बैठा के खिलाने के लिए हमारे पास पहले से ही बहुत सारे अपराधी है. इनमे से कुछ को हम छोड़ ले. कुछ को जमानर पर रिहा कर ले फिर आराम से बैठ के सोचेंगे की कुछ नए लोगो को कहा से और कैसे लायेंगे.
जय भारत .

भ्रष्टाचार रहित भारत : कुछ भयानक भूले II

भ्रस्टाचार अभी भी 'गरम माल' है बाज़ार में.  अभी भी हमारे समाचार पत्र इस 'चीज़' को महत्व दे रहे है. अभी भी हम इस 'चीज़' की बात कर रहे है. पर ठहरी तो 'चीज़' ही न कब तक याद रहेगी. हलाकि लोग शुरू कर दिए की हम इसके अलावा भी कुछ सोचना शुरू कर दिए है. बहन मायावती ने कहा की लोकपाल बिधेयक को  बनाने वाली समिति में कोई अनुसूचित जाती का कोई क्यों नहीं है ??  सबसे बड़ी बात है की इस देश के महान राजनितिक  दल के कुछ महान नेताओ ने उनका समर्थन  भी शुरू कर दिया है (नहीं भाई ये सेकुलर लोग है बस देश की प्रगति के लिए काम करते है )कितनी मेहनत करती है बहन जी. समिति अभी बनी नहीं की दीदी जाति की पूरी पोथी ही बना रखी है. काश की उत्तर प्रदेश के विकाश के लिए भी इतनी तत्पर रहती तो शायद उत्तर प्रदेश वालो के दिन फिर जाते. पर प्रश्न ये है की क्या बहन जी ही इतनी जाति के पीछे पड़ी रहती है ?  अभी कुछ दिनों पहले  महिलाओ के आरक्षण की बात जब आयी तब सब ठीक चल रहा था पर अचानक कुछ लोगो के पेट में समस्या होने लग. फिर उसमे से निकला पिछाड़ी जाति की महिलाओ के आरक्षण का जिन्ना. फिर उसके बाद जो हुआ इतिहास है. छतिशगढ़  में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल पर हमला हुआ. मरने वाले जवानों के नाम आया पर सबसे अजीब बात थी की ये मरनेवाले जवानो में ४२ उत्तर प्रदेश के थे ये बात भी साथ साथ आये . ये सित्फ़ हमारे देश में ही हो सकता है शहीद अब देश के नहीं राज्य के होने लगे है . अब कुछ दिनों में उनकी जाति और धरम की भी लिस्ट आएगी . और हम घमंड करेंगे की हमारी जाति का है या धर्मं है या राज्य का है . और सबसे बड़ा डर है की कही इसमें भी लोग आरक्षण न मागने लगे. हमारे महान प्रजातंत्र के महान संसद के महान नेताओ ने जाति के अनुसार जनगनना की अनुमति दे दी . इतने दिन तक मुझे ख्याल भी न आया की अन्ना हजारे पिछाड़ी जाति के है. ये हमारे देश में ही संभव है की हम किसी की भी जाति धरम या पूरी कुंडली निकाल के रख सकते बिना उसके गुण का बिचार किये हुए. सबसे अछी बात ही की इन सब के होने के बावजूद हम सेकुलर हम. हम जाति धरम से ऊपर वाले लोग है. अगर सभी ऐसे है तो हम क्या सिर्फ बहन जी को दोष देना उचित होगा??    

भारतीय भ्रस्टाचार और हमारा योगदान

भ्रस्टाचार अभी भी 'हॉट टोपिक ' है बाज़ार में . आप कुछ भी कहो कुछ भी लिखो..चलेगा ही नहीं दौड़ेगा भी ...आधे  जानते ही नहीं  की 'लोकपाल बिधेयक' है क्या ?? और आधो को रोटी ज्यादा ज़रूरी लगाती है इस बिधेयक से.  खैर इसमे भी कोई बुरे सबकी अपनी अपनी मजबूरी है. कोई शौक से भूखा है और कोई मजबूरी से भूखा है . तो मै पिछले बार भी कहा था की हम भारतीय बहुत साड़ी चीज़े शौक से करते है. हालाकि  ये अज़ब बात है की हमें हर एक दुसरे का शौक अजीब सा लगता है और इसी के लिए हम दूसरो की आलोचना करने के नए तरीके भी दूढ़ लेते है. उदहारण के लिए, भारत का हर नागरिक लालू प्रसाद यादव की आलोचना करता है की उन्होंने राबड़ी देवी को रसोई से निकाल के मुख्या मंत्री बना दिया (और दूसरे राज्य के लोग बड़े रस के साथ ये बात भी करते है की ये सिर्फ बिहार में ही संभव है ) पर वो लोग कभी नहीं बात करते की किस तरह राजीव गाँधी 'कॉकपिट'  से '७ रेस  कोर्स रोड' कैसे पहुच गए ? राहुल गाँधी को राजनीती करते हुए जुमे जुमे चार दिन भी नहीं हुए की लोग कैसे कहने लगते है की यही अगले प्रधान मंत्री है. स्थिति तो यहाँ तक पहुच जाती है की हमारे बर्तमान महा बिद्वान प्रधान मंत्री जी को भी कहना पड़ता है की राहुल हमारे अगले प्रधान मंत्री है.    आधार क्या है??  और अगर लालू प्रसाद यादव ने गलत किया तो ये लोग क्या क्या कर रहे है?? पर दुर्भाग्य से ये लोग पढ़े लिखे है. इनके पास आचे शब्द है इसलिए इन्होने अछि छवि बनाई है. इस लिए ये जो भी कहते है वो अछा हो जाता है (और अंग्रेजी में कोई बुरा कहता है क्या :) ).  तो मै शौक की बात कर रहा था. तो इस तरह से हम शौकिया गलत को सही सिद्ध करके चलते रहते है . 
    तो अभी हम भ्रस्टाचार के बिरुद्ध चलने वाली हवा में उड़ रहे है. ये हवा हवाई का खेल ऐसे ही चलता रहता है हमारे देश में. बस शब्द बदलते रहते है १९७१  में ये 'गरीबी हटाओ '  बाद में दलित बढाओ  हो गया चीज़े वाही है. न गरीबी हटी और न दलित बाधा. हा गरीबी हटाने कुछ खास लोग धनि ज़रूर हो गए और दलित बढाने में कुछ खास दलित ज़रूर आगे बढ़ गए. और हम लोगो ने इसमें बिशेश्ग्य हासिल कर ली है. बस ज़रुरत शुरुआत करने की है. ४००० करोड़ के मालिक मधु कोड़ा भी कहते है की मै आदिवासी हु इसलिए सताया जा रहा है. नोटों की माला पहनने वाली बहन कुमारी मायावती भी कहती है की वो दलित के बेटी है इसलिए सताया जा रहे है. या फिर क्रिकेट मैच   फिक्स करने वाले मोहमद अज़हरुदीन कहते है की वो मुस्लिम है इसलिए सताया जा रहा हा    . उपरी तौर पे ये साड़ी चीज़े बहु अलग नज़र आ रही पर सही बात ये है की ये सब हमारी भारतीय मानसिकता को बता रही है. ये वो लोग है जो हमारे भावनाओं का नेतृत्व करते है कभी राजनीतिज्ञ होकर तो कभी खिलाड़ी होकर. और जब ये ऐसी बाते कहते है तो इसका सीधा मायने है की वो जानते है की हमें कैसे ब्यवहार करना है. वो जानते है की 'आदिवासी ', 'दलित ' या  'मुस्लिम ' शब्द का प्रयोग करके वो अपने किसी भी पाप को छुपा सकते है और वो भी बहुत आसानी से. और दुर्भाग्य ये है की ये शब्द बढ़ाते जा रहे है. तो जब तक हम ऐसे ही दूसरो के हाथो 'ब्यवहार ' किये जाते रहेंगे तब तक भ्रस्टाचार रहेगा और उसे को भी बिधेयक कुछ नहीं कर पायेगा.

भ्रष्टाचार रहित भारत : कुछ भयानक भूले



पिछले सप्ताह के समाचार पत्र अगर आप उठा के देखे तो आपको पता चलेगा की भारत सबसे ज्यादा चिंतित भ्रष्टाचार को ले के था. सारे समाचार भ्रष्टाचार को  ले के थे. बुधजीवियो की सबसे बड़ी चिंता भ्रष्टाचार थी. भारत के १२० करोड़ लोगो की चिंता अचानक बढ़ गयी भ्रष्टाचार को ले . मै खुद भी हैरान हो गया की बर्ड फ्लू की तरह ये भ्रष्टाचार हमारे यहाँ कैसे घुस  आया ? हम संसार के सबसे अछे आचरण वाले लोग अचानक भ्रस्टाचारी कैसे हो गए?? और भ्रस्टाचारी की रातो रात हो गए ? अन्ना हजारे अनशन  पर क्या बैठे हमारे जीवन की तरंग ही बदल गयी? इसके पहले के सप्ताह में हम भारत वासी क्रिकेट के कप को माथे पे ले के घूम रहे थे (वो बात अलग है की कमबख्त कप भी नकली निकला  ) तब हममे ये बात कही नहीं थी की भ्रष्टाचार बास्तव में इतना बड़ा बिषय है पर अचानक सब कुछ बदल गया. लोग बैनर ले के दौड़ाने लगे भ्रष्टाचार के बिरुद्ध, गीत और नाटक  लिखे जाने लगे , सभाए और चिन्तक बैठक होने लगी भ्रष्टाचार के बिरुद्ध. यहाँ तक तो फिर भी ठीक था पर हमें चिंता होने लगी की सब लोग बोल रहे अमिताभ बच्चन क्यों नहीं बोल रहे है . चिंता साफ थी की सबको बोलना है  भ्रष्टाचार के बिरुद्ध में . कल तक हम कप ले के दौड़ रहे थे आज अचानक झंडा ले के दौड़ रहे है और मुझे पूरा बिश्वाश है की आने वाले कल में हम कुछ और ले के दौड़ रहे होंगे. और इन सारे कल में बस एक ही चीज़ 'कामन ' होगी और वो है हमारा दौड़ना. तो क्या हम अचानक भ्रष्ट हो गए? और अगर हा तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?? और सबसे पहला प्रश्न तो ये होने चाहिए की  भ्रष्टाचार है क्या ??

बचपन में एक कहानी सुनी थी . एक चोर को फ़ासी हुई. जब उससे अंतिम इच्छा के बारे में पूछा गया तो चोर बोला की मुझे फ़ासी वही दे जो कभी चोरी न किया हो. अन्त में चोर को छोडना पड़ा क्यों की कोई भी ऐसा न था की जो चोरी न किया हो. तो मेरा प्रश्न यह है की क्या हमारे राजनीतिज्ञ ही भ्रस्ताचारी है ?? हम जो सडको पे चिल्ला रहे है उनके बिरुद्ध कितने सही है? अब तो ये फैशन हो चूका ही की अगर आप क कुछ नहीं आता है तो राज नेताओ को गाली दो. जनता ऐसे ही ताली बजाएगी. बहुत पहले जावेद अख्तर ने अपने एक साक्षात्कार में एक बात कही थी की अगर देश के ९५ प्रतिशत लोग सही नहीं हो सकते तो ५ प्रतिशत नेताओ से सही होने की आशा रखना पाप है. आजादी से ६० साल बाद भी अगर हममे ये चिंता नहीं आ सकी की पान खा के कहा थूकना है तो फिर हमें कोई भी अधिकार नहीं की हम किसी दुसरे को गाली दे सके. तो चोरी आकड़ो से बुरी नहीं होती स्वाभाव से बुरी होती है, नियत से बुरी होती है. कोई २०००० करोड़ चुराता है और कोई २०० बात एक ही है क्योकि नियत एक ही है. अगर २ के बाद शुन्य में अन्तर है तो बस इसलिए की दोनों की जगह में अंतर है. कल को अगर जगह का 'एक्सचेंज ' कर दिया जाय तो कोई अंतर नहीं रहेगा शुन्य में. तो कहने का आशय है की हम गाँधी जी  की तरह तब तक मुह बंद रखेंगे जब तक की खुद ही मीठा खाना न छोड़ दे

मुझे गलत न ले. मै नहीं अन्ना हजारे के बिरुद्ध हु और न ही उनकी नियत पे मुझे शक है पर मै उनके रास्ते से सहमत नहीं हु . मै लोकपाल बिधेयक के बारे में नहीं जानता पर इतना जानता हु की ऐसे बिधेयक के आने या न आने से कुछ भी बदलने वाला नहीं है. दहेज़ के बिरुद्ध सालो पहले बिधेयक आ चूका है पर कितने प्रतिशत जवान पुरे बिश्वाश के साथ अपने माँ-बाप के बिरुद्ध जा के बोल सकते है की मुझे दहेज नहीं लेना है या नहीं देना है. भ्रष्टाचार किसी बिधेयक के आने या न आने  से न बढ़ सकता है और न ही कम हो सकता है. और न ही यह हमारे राजनितिज्ञो के मर जाने से कम होने वाला है. क्यों की ये ये राजनितिज्ञो की दें है ही नहीं. यह तो हमारे..हम सबकी दें है. हम सबमे वो भ्र्स्ताचारी बैठा हुआ है देर बार अवसर मिलने की है वो अपना रंग दिखाना शुरू कर देगा. इसलिए मुझे लाता है की फैशनबल तरीके दूसरे को गाली देने से बेहतर तरीका है हम अपने तरीके से पूरी लगन से अपना काम करे भ्रष्टाचार बेचारा अपने आप चला जाएगा. आखिरकार उपचार से सयम सब समय अछा रहा है. भूखे रहने के ये रस्ते हम सदा के लिए भूखे ही रख छोड़ेंगे. अगर मेरी बात न समझ में आये तो ये विडियो देख लीजियेगा शायद बेहतर लगे.



बटे रहने की मजबूरी


मै एक छुटभैया किस्म का लेखक हु जो कही न कही या हर कही कुछ न कुछ लिख ही देते है. ये ऐसी प्रजाति है जो कभी कभी लिखते है और कभी कभी बस लिखने के लिए लिख देते है. इधर बीच मै कई जगह लिख रहा था. कारण था की मेरी अंग्रेजी बहुत ख़राब थी. अभी भी बहुत अछी नहीं है पर भारत के कई राज नेताओ और अभिनेताओ से अछी है. एक समय था की मेरी हिंदी बहुत अछी थी. मै जब 'अछी ' बोल रहा हु तो सच में अछी थी पर इधर बीच कुछ दिनों से मुझे लग रहा था की ये दिन पर दिन ख़राब हो रही है. असल में भोजपुरी मेरी मातृभाषा है. जब बचपन में गाव छोड़ा तो हिंदी सिखाना पड़ा. जब उत्तर प्रदेश छोड़ा तो बंगला और अंग्रेजी सीखी. अब  तो ऐसी हालत है की खिचड़ी हो गया है सब कुछ भोजपुरी बोलो तो बंगला निकलता है मुह से. और हिंदी बोलो तो अंग्रेजी. बंगाली भद्र लोग को लगता है की मै बिहारी हु और बिहारियों को लगता की मै बंगाली. मुझे इस बात की फिक्र भी नहीं रही की कोई मुझे कहा का कहता है क्योकि मुझे इस बात का पता बहुत लग चुका था की हम मनुष्य बहुत ही अलग थलग प्राणी है. हम सब चीजों का dissection (मुझे इसकी हिंदी नहीं पता यार ) करना पसंद करते है. मै १३ साल का था जब अपना गाव छोड़ एक दूसरे गाव में गया पढ़ने के लिए. गाव में था तो मोहल्ले के हिसाब से बटा था या जाती के हिसाब से बटा था. दूसरे गाव पंहुचा तो गाव के हिसाब से बात गया. अब मेरे गाव मेरे मेरे अछे दोस्त थे उस नए विद्यालय में अब वो मेरे मोहल्ले और जाती पर उतना जोर नहीं देते थे. जब और कुछ बड़ा हुआ  तो बनारस चला गया पढ़ने. यहाँ आके फिर बटा. अब बटवारा गाव और शहर का था. हिंदी औए अंग्रेजी मिश्रित हिंदी का था. शुरू के दिनों में काफी मजाक का पत्र बना मै अपने बेचारी 'शुद्ध' हिंदी के लिए. और मै न चाहते हुए भी कब बदल गया या यु कहिये की वो अंग्रेजी मिश्रित हिंदी वाले जीत गए पता ही नहीं चला. इसके अलावा एक और बटवारा था छात्रावासी और बहार के रहने वालो में. चात्रव्वासो में भी आप किस किस छात्रावास के है उसका भी बटवारा. अब एक ही छात्रावास  में आप किस कक्षा  में है इसका बटवारा है और अगर एक ही कक्षा में है तो कैसे है पढ़ने में उसका बटवारा. फिर एक दिन अचानक मौक़ा मिला भारत सरकार से की तुम शोध कर सकते हो हमारे पासे से. फिर मैंने तय किया की नहीं मुझे उत्तर प्रदेश में नहीं रहने है क्योकि यहाँ पे लोग बाटने में उस्ताद है और मै बटना नहीं चाहता. फिर काफी मशक्कत के बाद कलकत्ता पंहुचा. मेरा प्यारा कलकत्ता. हालाकि बुढा हो गया है पर अभी भी किसी का भी 'रामू काका' की तरह ख्याल रखता है. खैर काफी सपने लेके आया कलकत्ते मै. पर यहाँ पे भी लोगो ने बाटने शुरू कर दिए. कभी बंगाली बिहारी के नाम पर बाता तो कभी इलिश पसंद और न पसंद करने वालो के नाम पे बाटा. मेरे गावे में मेरा एक दोस्त है. उसे खुद नहीं पता होता की वो कितने पते की बात करता है. वो अक्सर कहा करता है की 'दुनिया में कही भी जाओ लोग एक जैसे ही पाओगे बस भाषा बदल जाती है और भूषा बदल जाती है '. आज जब इतना सारा घूम चूका हु...इतनी साड़ी चीज़े देख चूका हु तो एक ही निष्कर्ष पर पंहुचा जो मेरा गाववाला दोस्त बिना कुछ पढ़े और बिना कही घुमे मुझसे दशको पहले ही जान चुका है. अब  जान चुका हु हम मनुष्य बाते रहने बाध्यता के साथ जीते है और उसी के साथ मर भी जाते है. बटे-बटे जीते है और बटे-बटे मर जाते है. 

जाती ना पूछो साधु की

जाती ना पूछो साधु की ,पूछ लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥


Jaati na pucho sadhu ki,puch lijiye gyan
mole karo talvar ka,pada renan do myan...

Ask not caste of a good soul, ask for wisdom prudence,
Value ever the essence, disregard outer appearence.


Do not ask the caste of a holy man, ask about his knoweldge,
bargain the price of sword, leave the scabbard alone.


राम कहानी