बटे रहने की मजबूरी


मै एक छुटभैया किस्म का लेखक हु जो कही न कही या हर कही कुछ न कुछ लिख ही देते है. ये ऐसी प्रजाति है जो कभी कभी लिखते है और कभी कभी बस लिखने के लिए लिख देते है. इधर बीच मै कई जगह लिख रहा था. कारण था की मेरी अंग्रेजी बहुत ख़राब थी. अभी भी बहुत अछी नहीं है पर भारत के कई राज नेताओ और अभिनेताओ से अछी है. एक समय था की मेरी हिंदी बहुत अछी थी. मै जब 'अछी ' बोल रहा हु तो सच में अछी थी पर इधर बीच कुछ दिनों से मुझे लग रहा था की ये दिन पर दिन ख़राब हो रही है. असल में भोजपुरी मेरी मातृभाषा है. जब बचपन में गाव छोड़ा तो हिंदी सिखाना पड़ा. जब उत्तर प्रदेश छोड़ा तो बंगला और अंग्रेजी सीखी. अब  तो ऐसी हालत है की खिचड़ी हो गया है सब कुछ भोजपुरी बोलो तो बंगला निकलता है मुह से. और हिंदी बोलो तो अंग्रेजी. बंगाली भद्र लोग को लगता है की मै बिहारी हु और बिहारियों को लगता की मै बंगाली. मुझे इस बात की फिक्र भी नहीं रही की कोई मुझे कहा का कहता है क्योकि मुझे इस बात का पता बहुत लग चुका था की हम मनुष्य बहुत ही अलग थलग प्राणी है. हम सब चीजों का dissection (मुझे इसकी हिंदी नहीं पता यार ) करना पसंद करते है. मै १३ साल का था जब अपना गाव छोड़ एक दूसरे गाव में गया पढ़ने के लिए. गाव में था तो मोहल्ले के हिसाब से बटा था या जाती के हिसाब से बटा था. दूसरे गाव पंहुचा तो गाव के हिसाब से बात गया. अब मेरे गाव मेरे मेरे अछे दोस्त थे उस नए विद्यालय में अब वो मेरे मोहल्ले और जाती पर उतना जोर नहीं देते थे. जब और कुछ बड़ा हुआ  तो बनारस चला गया पढ़ने. यहाँ आके फिर बटा. अब बटवारा गाव और शहर का था. हिंदी औए अंग्रेजी मिश्रित हिंदी का था. शुरू के दिनों में काफी मजाक का पत्र बना मै अपने बेचारी 'शुद्ध' हिंदी के लिए. और मै न चाहते हुए भी कब बदल गया या यु कहिये की वो अंग्रेजी मिश्रित हिंदी वाले जीत गए पता ही नहीं चला. इसके अलावा एक और बटवारा था छात्रावासी और बहार के रहने वालो में. चात्रव्वासो में भी आप किस किस छात्रावास के है उसका भी बटवारा. अब एक ही छात्रावास  में आप किस कक्षा  में है इसका बटवारा है और अगर एक ही कक्षा में है तो कैसे है पढ़ने में उसका बटवारा. फिर एक दिन अचानक मौक़ा मिला भारत सरकार से की तुम शोध कर सकते हो हमारे पासे से. फिर मैंने तय किया की नहीं मुझे उत्तर प्रदेश में नहीं रहने है क्योकि यहाँ पे लोग बाटने में उस्ताद है और मै बटना नहीं चाहता. फिर काफी मशक्कत के बाद कलकत्ता पंहुचा. मेरा प्यारा कलकत्ता. हालाकि बुढा हो गया है पर अभी भी किसी का भी 'रामू काका' की तरह ख्याल रखता है. खैर काफी सपने लेके आया कलकत्ते मै. पर यहाँ पे भी लोगो ने बाटने शुरू कर दिए. कभी बंगाली बिहारी के नाम पर बाता तो कभी इलिश पसंद और न पसंद करने वालो के नाम पे बाटा. मेरे गावे में मेरा एक दोस्त है. उसे खुद नहीं पता होता की वो कितने पते की बात करता है. वो अक्सर कहा करता है की 'दुनिया में कही भी जाओ लोग एक जैसे ही पाओगे बस भाषा बदल जाती है और भूषा बदल जाती है '. आज जब इतना सारा घूम चूका हु...इतनी साड़ी चीज़े देख चूका हु तो एक ही निष्कर्ष पर पंहुचा जो मेरा गाववाला दोस्त बिना कुछ पढ़े और बिना कही घुमे मुझसे दशको पहले ही जान चुका है. अब  जान चुका हु हम मनुष्य बाते रहने बाध्यता के साथ जीते है और उसी के साथ मर भी जाते है. बटे-बटे जीते है और बटे-बटे मर जाते है. 

जाती ना पूछो साधु की

जाती ना पूछो साधु की ,पूछ लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥


Jaati na pucho sadhu ki,puch lijiye gyan
mole karo talvar ka,pada renan do myan...

Ask not caste of a good soul, ask for wisdom prudence,
Value ever the essence, disregard outer appearence.


Do not ask the caste of a holy man, ask about his knoweldge,
bargain the price of sword, leave the scabbard alone.


राम कहानी