भ्रष्टाचार रहित भारत : कुछ भयानक भूले



पिछले सप्ताह के समाचार पत्र अगर आप उठा के देखे तो आपको पता चलेगा की भारत सबसे ज्यादा चिंतित भ्रष्टाचार को ले के था. सारे समाचार भ्रष्टाचार को  ले के थे. बुधजीवियो की सबसे बड़ी चिंता भ्रष्टाचार थी. भारत के १२० करोड़ लोगो की चिंता अचानक बढ़ गयी भ्रष्टाचार को ले . मै खुद भी हैरान हो गया की बर्ड फ्लू की तरह ये भ्रष्टाचार हमारे यहाँ कैसे घुस  आया ? हम संसार के सबसे अछे आचरण वाले लोग अचानक भ्रस्टाचारी कैसे हो गए?? और भ्रस्टाचारी की रातो रात हो गए ? अन्ना हजारे अनशन  पर क्या बैठे हमारे जीवन की तरंग ही बदल गयी? इसके पहले के सप्ताह में हम भारत वासी क्रिकेट के कप को माथे पे ले के घूम रहे थे (वो बात अलग है की कमबख्त कप भी नकली निकला  ) तब हममे ये बात कही नहीं थी की भ्रष्टाचार बास्तव में इतना बड़ा बिषय है पर अचानक सब कुछ बदल गया. लोग बैनर ले के दौड़ाने लगे भ्रष्टाचार के बिरुद्ध, गीत और नाटक  लिखे जाने लगे , सभाए और चिन्तक बैठक होने लगी भ्रष्टाचार के बिरुद्ध. यहाँ तक तो फिर भी ठीक था पर हमें चिंता होने लगी की सब लोग बोल रहे अमिताभ बच्चन क्यों नहीं बोल रहे है . चिंता साफ थी की सबको बोलना है  भ्रष्टाचार के बिरुद्ध में . कल तक हम कप ले के दौड़ रहे थे आज अचानक झंडा ले के दौड़ रहे है और मुझे पूरा बिश्वाश है की आने वाले कल में हम कुछ और ले के दौड़ रहे होंगे. और इन सारे कल में बस एक ही चीज़ 'कामन ' होगी और वो है हमारा दौड़ना. तो क्या हम अचानक भ्रष्ट हो गए? और अगर हा तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?? और सबसे पहला प्रश्न तो ये होने चाहिए की  भ्रष्टाचार है क्या ??

बचपन में एक कहानी सुनी थी . एक चोर को फ़ासी हुई. जब उससे अंतिम इच्छा के बारे में पूछा गया तो चोर बोला की मुझे फ़ासी वही दे जो कभी चोरी न किया हो. अन्त में चोर को छोडना पड़ा क्यों की कोई भी ऐसा न था की जो चोरी न किया हो. तो मेरा प्रश्न यह है की क्या हमारे राजनीतिज्ञ ही भ्रस्ताचारी है ?? हम जो सडको पे चिल्ला रहे है उनके बिरुद्ध कितने सही है? अब तो ये फैशन हो चूका ही की अगर आप क कुछ नहीं आता है तो राज नेताओ को गाली दो. जनता ऐसे ही ताली बजाएगी. बहुत पहले जावेद अख्तर ने अपने एक साक्षात्कार में एक बात कही थी की अगर देश के ९५ प्रतिशत लोग सही नहीं हो सकते तो ५ प्रतिशत नेताओ से सही होने की आशा रखना पाप है. आजादी से ६० साल बाद भी अगर हममे ये चिंता नहीं आ सकी की पान खा के कहा थूकना है तो फिर हमें कोई भी अधिकार नहीं की हम किसी दुसरे को गाली दे सके. तो चोरी आकड़ो से बुरी नहीं होती स्वाभाव से बुरी होती है, नियत से बुरी होती है. कोई २०००० करोड़ चुराता है और कोई २०० बात एक ही है क्योकि नियत एक ही है. अगर २ के बाद शुन्य में अन्तर है तो बस इसलिए की दोनों की जगह में अंतर है. कल को अगर जगह का 'एक्सचेंज ' कर दिया जाय तो कोई अंतर नहीं रहेगा शुन्य में. तो कहने का आशय है की हम गाँधी जी  की तरह तब तक मुह बंद रखेंगे जब तक की खुद ही मीठा खाना न छोड़ दे

मुझे गलत न ले. मै नहीं अन्ना हजारे के बिरुद्ध हु और न ही उनकी नियत पे मुझे शक है पर मै उनके रास्ते से सहमत नहीं हु . मै लोकपाल बिधेयक के बारे में नहीं जानता पर इतना जानता हु की ऐसे बिधेयक के आने या न आने से कुछ भी बदलने वाला नहीं है. दहेज़ के बिरुद्ध सालो पहले बिधेयक आ चूका है पर कितने प्रतिशत जवान पुरे बिश्वाश के साथ अपने माँ-बाप के बिरुद्ध जा के बोल सकते है की मुझे दहेज नहीं लेना है या नहीं देना है. भ्रष्टाचार किसी बिधेयक के आने या न आने  से न बढ़ सकता है और न ही कम हो सकता है. और न ही यह हमारे राजनितिज्ञो के मर जाने से कम होने वाला है. क्यों की ये ये राजनितिज्ञो की दें है ही नहीं. यह तो हमारे..हम सबकी दें है. हम सबमे वो भ्र्स्ताचारी बैठा हुआ है देर बार अवसर मिलने की है वो अपना रंग दिखाना शुरू कर देगा. इसलिए मुझे लाता है की फैशनबल तरीके दूसरे को गाली देने से बेहतर तरीका है हम अपने तरीके से पूरी लगन से अपना काम करे भ्रष्टाचार बेचारा अपने आप चला जाएगा. आखिरकार उपचार से सयम सब समय अछा रहा है. भूखे रहने के ये रस्ते हम सदा के लिए भूखे ही रख छोड़ेंगे. अगर मेरी बात न समझ में आये तो ये विडियो देख लीजियेगा शायद बेहतर लगे.



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