गैंग्स ऑफ़ वासेपुर : एक ऑथेंटिक कथा

शुरुआत एक पाप-स्वीकारोक्ति और अनुराग कश्यप से क्षमा याचना के साथ शुरू करना चाहूँगा . पाप ये है की मैंने उनकी फिल्म गैंग्स  ऑफ़ वासेपुर इन्टरनेट पर देखी और कारण ये है की मई जहा हु उनकी फिल्म कभी रिलीज़ नहीं होगी और मुझ बिहारी के लिए संभव नहीं है की वो लम्बे समय तक उनके इस 'मुस्लिम महाभारत' को ना देखे रह सके।





     
हमारे समय में बहुत सारी  फिल्मे है हिंदी में पर 'ऑथेंटिक' फिल्मे बहुत ही कम देखने को मिलाती ही। हिंदी सिनेमा के 100 सालो के इतिहास में 'ऑथेंटिक' फिल्मो को आप उंगली में गिन सकते है। ऑथेंटिक से मेरा मतलब है आप का जो बिषय है आपका जो उद्देश्य है फिल्म को बनाने का आप उस बिषय या उद्देश्य को बीना की मिर्च मसाला लगाए लोगो को बोलते है। इसके पहले मै बिशाल भारद्वाज की ओमकारा देखि थी फिल्म बहुत ही अच्छी थी पर मै   उसको ऑथेंटिक नहीं कह सकता क्योकि बिशाल भारद्वाज का संगीत बहुत अच्छा होने के बावजूद उस समाज को कतई नहीं दर्शाता जिसके बारे में वो कहानी है। ओमकारा में बहुत सारे अच्छे कलाकार और उनके अच्छे अभिनय करने के बावजूद वो उस भाषा को कतई नहीं बोलते जिस जगह को लेकर वो फिल्म बनाई गयी थी। पर अनुराग कश्यप के गैंग्स  ऑफ़ वासेपुर के लोग वही बोलते है और  वही गाते है जो बास्तव में वासेपुर के लोग करते है। और यही कारण है की आप अगर इन्टरनेट पर देखे तो गैंग्स  ऑफ़ वासेपुर के संगीत समीक्षा को पढ़े तो समीक्षक गैंग्स  ऑफ़ वासेपुर के संगीत को औसत से भी कम मानते है। समस्या संगीत में नही है समीक्षक में है जो बास्तव में वासेपुर से जुड़ ही नहीं पाता . वो स्वीकार ही नहीं कर पाता  के रहमान के 'इलेक्ट्रिक गिटार ' के अलावा भी कुछ ऐसी चीज़े है जहा संगीत बसता है। और यही कारण है की जब कैलाश खेर एक गिटार के सहारे 'अलाल्ह के बन्दे ' गाते है तो सब लोग वाह वाह करते है पर जब दीपक कुमार मुजफ्फरपुर वाले ने 'हमनी के छोड़ ' गाना सिर्फ एक हारमोनियम पर गाया तो किसी संगीत समीक्षक का ध्यान ही नहीं गया। 
    अब थोडा फिल्म के बारे में बात कर ले। मेरी देखी ये शायद यहाँ पहली फिल्म होगी जहा पर सिर्फ एक किरदार ही सब कुछ है। बिस्वास करिए सरदार खान ही  गैंग्स  ऑफ़ वासेपुर का नायक है..नायीका है..बिलेन है। उसके अलावा जो भी लोग है बस सरदार के लिए है। उनका उतना ही योगदान है इस महाभारत में जितना योगदान पुराने महाभारत में दुशाशन का पुराने महाभारत में है. कहानी की समस्या है की वो वास्सेपुर के बारे में सबकुछ दिखा बता देना चाहती है और यही कारण है की फिल्म कही कही घिसटती नज़र आती है पर जब टाइम-फ्रेम बहुत बड़ा हो तो ऐसा होना स्वाभाविक है। सबसे अच्छी बात, जो की मै  पहले भी बता चुका हु, जो मुखे लगी वो है इसकी authenaticity . आप फिल्म के उस दृश्य के बारे में सोचे जिसमे मुकेश तिवारी 'सलाम इ इश्क मेरी जान ' गा रहे होते है। जैसे उन्होंने 'र ' के बदले 'ण' का प्रयोग किया है उससे मुझे मेरे धनबाद के दोस्तों की याद आ गयी जिनको हम ऐसे ही चिढ़ाया करते थे  'र ' के बदले 'ण' का प्रयोग करके। हलकी मनोज बाजपेयी की फिल्म शूल भी बिहारी परिद्रश्य में ही थी पर अगर आप देखे तो आप जान जायेंगे की लोगो ने शूल में कितना मसाला मिलाया था। 
  अंत में अनुराग को धन्यबाद की गुलाल और उड़ान के बाद  उन्होंने गैंग्स  ऑफ़ वासेपुर के रूप में फिर से कुछ देखने लायक कुछ दिया है. 

Kaartoon ka kaata : कार्टून का काटा लगा

अभी हमारे देश में कार्टूनों का समय चल रहा है। हम किसी भी चीज़ से ज्यादा समय तक मनोरंजन लाभ नहीं कर सकते है। अन्ना अपने दल के साथ अभी भी भ्रस्ताचार वाला गाना अभी भी गा रहे जिसे हम भी आनंदित हो रहे पैसे में हमारे राजनीतिज्ञ कैसे पीछे रहते . असल में कार्टून काण्ड की शुरुवात पश्चिम बंगाल से शुरू हुआ। जादवपुर विश्वबिद्यालय के एक प्राध्यापक ने ममता दीदी का एक कार्टून अपने बंधुओ को फॉरवर्ड (अग्रसित फॉरवर्ड का उचित हिंदी होगा क्या ??) और कुछ लोग बेचारे प्राध्यापक को अच्छे तरह से पीटा फिर कोल्कता पोलिस ने भी स्वभाव के बिरुद्ध ब्वाव्हार करते उनको गिरफ्तार भी कर लिए।  जिन्हें बांग्ला नहीं आता उनको बता  दू  ये कार्टून सत्यजीत राय एक फिल्म 'सोनार केला ' (सोने का किला ) पर आधारित है जिसमे इस संबाद के बाद 'विलेन ' (सिनेमा का मुख्य गुंडा ) एक अच्छे लोग की ह्त्या कर देता है। बास्तव में ये कार्टून हमारे बर्तमान और निबर्तमान रेल मंत्री के सम्बन्ध में है। संबाद कुछ ऐसे है

ममता दीदी : देखो मुकुल सोने का किला ! (रेल बिभाग के लिए )
मुकुल रॉय : वो दुष्ट लोग है (दिनेश त्रिवेदी के लिए )
ममता दीदी : दुष्ट लोग गायब (रेल मंत्री को हटा दिया )

हलाकि मुझे और मेरे जैसे कई लोगो को इस कार्टून में कुछ आपतिजनक कुछ नहीं लगा पर ममता दीदी की माने तो असल में इस ममता दीदी को जान से मार देने का प्लान था :(. वाकई में ! कुछ दिन पहले NCERT की एक किताब में आज से 60 बर्ष पहले प्रकाशित एक कार्टून छापा। बिषय था संबिधान निर्माण की मंद गति . पर हमारे बुद्धिमान बिचारक मानते है की ये दलित अपमान है. हम क्या धीरे धीरे हास्य भूलते जा रहे है। अजब स्थति है हम थोड़ा सा भी हास्य नहीं समझते है या सहन नहीं कर सकते. डॉक्टर अम्बेद्कर जब जीवित थे तब वो इस कार्टून को लेकर अपमानित थे मुझे इस बात को लेकर भी संदेह है . इसी बिषय को लेकर मैंने थोड़ा सा खोजने के बाद पाया की कार्टून की ये परमपरा उतनी ही पुरानी है जितनी भारत का जनतंत्र . आप नीचे दिए गए कार्टून उदाहर के लिए देख सकते है। आप हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्व पी वी नरसिम्हाराव और श्री देवेगौडा के कार्टून कभी देखए और जानेगे की कितने स्वस्थ तरीके से उनलोगों ने लिया इसको। हमारे लालू प्रसाद यादव जी इस स्वस्थ प्रकृति के साक्षात् उदाहरण है।







चलना हमारा काम है - शिवमंगल सिंह 'सुमन'

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गति प्रबल पैरों में भरी, फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने, है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ, तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है ।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया, कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई, कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है ।


जीवन अपूर्ण लिए हुए, पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा, हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध, इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है ।


इस विशद विश्व-प्रहार में, किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह, किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है ।


मैं पूर्णता की खोज में, दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ, रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे? जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है ।

साथ में चलते रहे, कुछ बीच ही से फिर गए,
 गति न जीवन की रूकी, जो गिर गए सो गिर गए,
 रहे हर दम, उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है ।

फकत यह जानता, जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज, दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल, वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है ।

Jhansi Ki Rani : Subhadra kumari Chauhaan
















झाँसी की रानी
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झांसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
सुभद्रा कुमारी चौहान

English Translation of Hindi Poem Jhansi Ki  Raani by Subhadra Kumari Chauhaan 

Jhansi Ki Rani (The Queen of Jhansi)

1
The throne got shook, and the tension erupted among the Raajvanshs, the royal heirs of the throne, 
In aged India, a new wave of youth was spreading,
All the inhabitants of India had realized the worth of their lost freedom,
All of them had decided to get rid of the British rule, 
The old swords started glittering again like new ones in the form of the freedom movement in 1857.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

2
She was as dear to the Nana (Nana Ghunghupant ) of Kanpur as her real sister,
Her name was Laxmibai and she was the only daughter of her parents,
She had been with Nana from her early childhood, since she was a school student.
Spear, knife, sword, axe (all different types of weapons used in her time) were her companions all the time. 
She had learned by heart the valorous stories of shivaji (a renowned king of Maharashtra).
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

3
No one could guess whether she was Laxmi or Durga devi ( Durga Goddess , also called Bhavani ) or reincarnation of Devi durga,
Her expertise in using a sword made the people of Marathward (Pulkit) wonder,
They learned the war strategy of how to attack the prey,
To ambush her prey and to break the vanity were among her favorite supports,
Maharashtra-kul-Devi (The goddess of the Maharashtra ) was as dear to her as Bhavani (Durga Devi )
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

4
With valor in a grand festival, she got married in Jhansi,
After her marriage, Laxmibai came to Jhansi as a queen with shower of joy,
A grand celebration took place in the royal palace of Jhansi. That was a good luck for Bandelos that she came to Jhansi,
That was as Chitra met with Arjun or Shiv had got his beloved Bhavani (Durga).
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

5
She came as a good luck to the royal palace of Jhansi and for a log time the palace remained decorated with lighting candles in celebration. 
But as days passed the dark clouds of misfortune covered the royal palace.
She stopped wearing bangles for that was the time for a battle.
The queen got widowed and her fate was very unkind to her.
The royal king had no children when he died and the queen was grief stricken.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

6
So the candle of the royal castle blew off and Dalhousie (a British governor) became very happy in his heart about the situation (that the royal palace had no king or someone strong to defend the throne).
He thought that the time was right to usurp the kingdom.
He sent his soldiers to Citadel and raised the British flag on the royal palace.
The British rule came to Jhansi as the guardian of an orphan. 
The Rani saw everything with tears in her eyes that how Jhansi got deserted.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

7
Strong (and Cruel) kings do not care about the cajoling.
They (The British Rulers) came to India in the disguise of poor merchants. 
The British governor (Dalhousi) then extended his influence in India and so the fate of India turned over. 
He insulted even the feudal and heads of state of India. 
The queen took the gesture of a maidservant; the maid was the real queen.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

8
First of all Indian rulers lost the capital of India, Delhi and subsequently they lost the control of Lucknow. 
Peshwa was imprisoned in Bithur and then the Nagpur tragedy occurred.
After the fall of Nagpur, it was not a big task for the intruders to take the control of Udaipur, Tanjore satara and Karnatak.
They already had the control of Sindh, Punjab and Assam.
The tale of fall of Bengal, Madras and many other states was also the same. 
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

9
Rani(the queen) wept in her quarter for all that disaster. She was rather lost and was sick of the situation.
Her ornaments and royal clothes were being sold in the markets of Calcutta.
The advertisements for the sale of the royal stuff were being published in the daily newspapers of the British Government. 
“Buy the ornaments of Nagpur, Buy the Naulakha locket of Lucknow” had been the highlights of such advertisements.
In this manner the honor of the royal ladies had to be sold to foreigners.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

10
The cottages of poor were full of grief and the royal houses were also full of insult (the royal ladies were maltreated and insulted by the British intruders whereas the poor folk were also in the clutches of the atrocities by the British rulers).
Brave soldiers of India had in their mind the prestige of their ancestors.
The name of Ghunghupant and Nana, the titles of the great warriors and their weapons, they have lost all such treasure as well.
The beloved sisters of Nana (queen of Jhansi- Rani) invited Nana to visit Ran-Chandi. 
The ritual of the holy war of freedom started because they had to awake the divine spirit of the people of India, which had been sleeping so far.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

11
The fire of revolt started from royal palace, which became hot like burning sun when reached to the houses of the poor or common folk. 
This spark of freedom started from the inner soul of the people. 
It captured Jhansi first then spread in Delhi and also engulfed Lucknow.
The freedom struggle was also in full swing in Merat, Kanpur and Patna. 
The people of Jabalpur, Kolhapur were also being inspired from others.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

12
In that great freedom struggle, many brave brothers lost their lives.
Among them were Nana GhunGhupant, Tantya, great Azeemullah, 
And many others like Ahmedshah Moulvi, Thakur Kunwar singh, Sainik Abhiram.
Their names will always be shining in the heavens of the ancient history of India, 
but they were considered rebels at that time and their great sacrifice was considered a crime against the state of British India.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

13
Well, leave the tale of the bravery of those great men and let us go to the battlefields of Jhansi,
Where Laxmibai is standing boldly like a man among the other brave men. 
Lieutenant Walker reached there and proceeded further in the people’s army of the brave men,
Rani drew her sword, the beating of the drums started in the heavens,
Walker ran away from the battlefield as Rani defectively wounded him. He was astonished on the agility of Rani.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

14
Rani preceded further and reached Kalpi after taking a hard journey of hundreds of miles.
The horse got exhausted and fell to the ground and the rider (Walker) also fell down immediately .
In the field of Yamuna again Rani was defeating the British. 
The victorious Rani proceeded further and took the control of Gawalior.
The British thus left the Vsindia (capital of Gawalior) and their rule ended in Gawalior.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

15
Although the freedom fighters had won, the British army was again getting organized. This time, general smith was in command but he was also being defeated by the brave freedom fighters – he had to be defeated.
Kaana and Mandra (the associates of Rani) were also accompanying her in the war zone. In the battlefield they both were fighting furiously.
But a British commander, Hughrose came from the backside to help his soldiers – Alas! The British soldiers surrounded the Rani from all sides.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

16
Though Rani was deeply wounded, still she was fighting and had managed to get through the British army,
But she got stuck because a sewerage canal was there on the other end and she was in deep trouble,
Her horse got stuck there - the horse was untrained, in the mean time, the British soldiers, riding on their horses reached there.
Rani was all alone while enemies were numerous who were attacking her with their sword from all sides,
Rani, who was fighting like a lioness, succumbed to the wounds and fell down. She had to achieve a glorious death in war ( Martyrdom ).
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

17
Rani was martyred in the battlefield.Her departed soul was then riding a divine vehicle, moving towards heavens
the Light of her divine soul met with the divine light in the heavens, she was the real heir of divinity,
She was only thirty years of age. She was not a human; rather she was divine spirit (a holy being),
Who did come, in the gesture of a female freedom fighter, to give us a respectable life of light and freedom ,
She showed us the path of freedom, and taught us the lesson of courage, she taught us what we might have learned.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.

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The people of India will remember this debt of yours (O! Rani Laxmaibai), may you be blessed, dear Rani,
Your this life sacrifice will awake an indestructible soul of freedom in the people,
History may be made silent or if truth is hanged or killed, or if the drinkers become victorious or if they destroy jhansi with cannonballs,
You, by yourself be the memorial of Rani (queen of Jhansi) because you had been an eternal token of courage.
From the mouths of the Bandelas and the Harbolas (Religious singers of Bandelkhand), we heard the tale of the courage of the Queen of Jhansi relating how gallantly she fought like a man against the British intruders: such was the Queen of Jhansi.