Kaartoon ka kaata : कार्टून का काटा लगा

अभी हमारे देश में कार्टूनों का समय चल रहा है। हम किसी भी चीज़ से ज्यादा समय तक मनोरंजन लाभ नहीं कर सकते है। अन्ना अपने दल के साथ अभी भी भ्रस्ताचार वाला गाना अभी भी गा रहे जिसे हम भी आनंदित हो रहे पैसे में हमारे राजनीतिज्ञ कैसे पीछे रहते . असल में कार्टून काण्ड की शुरुवात पश्चिम बंगाल से शुरू हुआ। जादवपुर विश्वबिद्यालय के एक प्राध्यापक ने ममता दीदी का एक कार्टून अपने बंधुओ को फॉरवर्ड (अग्रसित फॉरवर्ड का उचित हिंदी होगा क्या ??) और कुछ लोग बेचारे प्राध्यापक को अच्छे तरह से पीटा फिर कोल्कता पोलिस ने भी स्वभाव के बिरुद्ध ब्वाव्हार करते उनको गिरफ्तार भी कर लिए।  जिन्हें बांग्ला नहीं आता उनको बता  दू  ये कार्टून सत्यजीत राय एक फिल्म 'सोनार केला ' (सोने का किला ) पर आधारित है जिसमे इस संबाद के बाद 'विलेन ' (सिनेमा का मुख्य गुंडा ) एक अच्छे लोग की ह्त्या कर देता है। बास्तव में ये कार्टून हमारे बर्तमान और निबर्तमान रेल मंत्री के सम्बन्ध में है। संबाद कुछ ऐसे है

ममता दीदी : देखो मुकुल सोने का किला ! (रेल बिभाग के लिए )
मुकुल रॉय : वो दुष्ट लोग है (दिनेश त्रिवेदी के लिए )
ममता दीदी : दुष्ट लोग गायब (रेल मंत्री को हटा दिया )

हलाकि मुझे और मेरे जैसे कई लोगो को इस कार्टून में कुछ आपतिजनक कुछ नहीं लगा पर ममता दीदी की माने तो असल में इस ममता दीदी को जान से मार देने का प्लान था :(. वाकई में ! कुछ दिन पहले NCERT की एक किताब में आज से 60 बर्ष पहले प्रकाशित एक कार्टून छापा। बिषय था संबिधान निर्माण की मंद गति . पर हमारे बुद्धिमान बिचारक मानते है की ये दलित अपमान है. हम क्या धीरे धीरे हास्य भूलते जा रहे है। अजब स्थति है हम थोड़ा सा भी हास्य नहीं समझते है या सहन नहीं कर सकते. डॉक्टर अम्बेद्कर जब जीवित थे तब वो इस कार्टून को लेकर अपमानित थे मुझे इस बात को लेकर भी संदेह है . इसी बिषय को लेकर मैंने थोड़ा सा खोजने के बाद पाया की कार्टून की ये परमपरा उतनी ही पुरानी है जितनी भारत का जनतंत्र . आप नीचे दिए गए कार्टून उदाहर के लिए देख सकते है। आप हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्व पी वी नरसिम्हाराव और श्री देवेगौडा के कार्टून कभी देखए और जानेगे की कितने स्वस्थ तरीके से उनलोगों ने लिया इसको। हमारे लालू प्रसाद यादव जी इस स्वस्थ प्रकृति के साक्षात् उदाहरण है।







चलना हमारा काम है - शिवमंगल सिंह 'सुमन'

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गति प्रबल पैरों में भरी, फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने, है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ, तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है ।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया, कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई, कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है ।


जीवन अपूर्ण लिए हुए, पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा, हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध, इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है ।


इस विशद विश्व-प्रहार में, किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह, किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है ।


मैं पूर्णता की खोज में, दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ, रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे? जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है ।

साथ में चलते रहे, कुछ बीच ही से फिर गए,
 गति न जीवन की रूकी, जो गिर गए सो गिर गए,
 रहे हर दम, उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है ।

फकत यह जानता, जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज, दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल, वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है ।