Truth of news : समाचारों का सच

बचपन में सुना था की कलम में वो शक्ति है जो साता की शक्तिशाली गलियारों को भी हिला शक्ति है.कुछ दिनों से में सोच रहा था की सच में ऐसा है? मै बहुत दिनों का इतिहास तो नहीं जानता पर मेरे जानकारी में ऐसा कोई उदहारण नहीं है जहा पर इस कलम ने सत्ता के बिरुध कुछ किया हो. हा सत्ता के पक्ष में बहुत सारा अक्षपात अवश्य किया है . बड़ा अजीब लगता है की जब यह भी समाचार मुख्य पृष्ठ पर आने लगे की सचिन तेंदुलकर ने अपनी मोटर कार बेच दी. जब ऎसी भी बाते समाचार बनने लगे तो संदेह होने लगता है की हमारे समाचार पत्र. या समाचार चैनेल वाले लोग सअमाचार को लेकर ज्यादा गंभीर है! क्या वास्तव में वो जनता को सच्चाई बताने के लिए तत्पर है! क्या वास्तव में उनमे इतना साहस है की वो सच बोल सके! मुहे तो कभी नहीं लगा. मुझे वो गहराई कभी नहीं दिखी. सर्वप्रथम अगर हम विषय को लेकर बात करे. उदाहरण के लिए हम हाल में हुए गैस और डीजल के दामो में हुए बढ़ोतरी की बात करे तो हम पाते है की सारे खबरिया चैनेल वाले घूम घूम के लोगो का साक्षात्कार ले रहे थे की कैसे ये बढे दाम उनके जीवन को प्रभावित करेंगे. और लोग भी टीवी पर दिखने के लिए अनाप सनाप बके जा रहे थे. कुछ को चिंता रही की वो चिप्स नहीं खा पायेंगे तू कुछ मरे जा रहे थे की 'ब्यूटी पअर्लर' में उनका आना कम हो जायेगा . खैर जो भी हो. होना तो ये  चाहिए की ये चैनल वाले अपनी ऊर्जा इस पर खर्च करे की ये दाम क्यों बढे है या फिर ये बढ़ोतरी क्या अव्श्यव्म्भावी थी या कुछ और पते भी थे . पर इन बातो को पता लगाने या इन पर चर्चा करने के लिए समय और ज्ञान दोनों की आवशयकता होती है पर इन दोनों चीजों का घोर आभाव है इन लोगो के पास. अगर ऊपर दिए हुए चित्र को देखे तो आपको पता लगेगा की ये भारत बर्ष के 'सबसे तेज' समाचार चैनेल से लिया गया है. अब सबसे तेज होने के चक्कर में ये लोग इतना भी भूल गए की भारत-बेस्तइंडीज का दूसरा टेस्ट मैच २८ जून से खेला जाएगा न की २८ जुलाई से. तो अगर गुडवत्ता और तेजी में किसी के एक चुनना हो तो उन्होंने तेजी को चुना जिससे उनका हो सके भला हो पर जनता का चुना लगाना तय है. 
अब थोड़ी भाषा की बात हो जाय. छोटे में रेडियो के समाचार वाचको के बोलने के और  शब्दों की नक़ल किया करते थे हम. पर आजकल तो पता ही नहीं चलता ही की हम समाचार सुन रहे है या फिर मंच पर नाटक चल रहा है! एक समाचार वाचक पर एक चुटकुला सुना है मैंने. समाचार वाचक परेशान हो अपने मित्र से कहता है 'यार इस नौकरी ने मुझे परेशान कर रखा है. घर पे पत्नी पुछती है की सब्जी कैसी बनी है तो मुह से निकल जाता है 'सनसनीखेज''. मुझे लगता है की ये चुटकुला ही अपने आप में सब कह जाता है. विचारो का निर्माण करने वाली कलम आज खुद दिग्भ्रमित हो के घुमे जा रही है.



Ek Saadhu Ki Maut : एक साधू की मौत

अभी चार बाबा लोग चर्चे में है. हालाकि बाबा हमेशा से ही चर्चे में रहे है  पर इस बार कारण अलग अलग है. एक बाबा जो सबसे चर्चे में है उनका नाम है बाबा रामदेव. थे बेचारे योगी. सब ठीक ठाक ही चल रहा था. सब सुन्दर सब पवित्र. सारे देश के लोग खुश सारे देश के लोग स्वस्थ. बाबा से किसी का कोई नुकशान न था इस लिए बाबा पे कोई इलज़ाम भी न था. फिर अचानक बाबा को सूझी चलो देश के विकाश के लिए कुछ करेंगे. लोग तो स्वस्थ हो ही रहे है अब समृद्ध भी हो जायेंगे. पर बाबा को पता न था की कीचड के ये खेल बहुत कठिन होते है. आप कुछ कीचड फेकोगे  तो लेना भी पडता है कुछ. और तब तो और ज्यादा लेना पडता है जब बेश्यालय में जाके कीर्तन करना शुरू कर दो. बहुत छोटा था तो मेरे दादाजी मुझे एक मुहावरा कहा करते थे - बैल जैसा हो घास वैसा ही देते है. पर बाबा इस बात को समझ न पाए और लगे बिगड़े बैल को अछा घास  खिलाने. बैल तो बिगडैल  लगा सिंग उठा के मारने. बाबा ने कहा काला धन लाओ बैल ने कहा डंडा  दिखाओ. बाबा इस बार भी एक छोटी चीज़ समझने से चूक गए और वो है जिसकी लाठी उसकी भैस.
         दूसरे बाबा तो हमेशा से चर्चा में रहे है . जब से समझाना शुरू किया तब से वो घुघराले बाल देखते आया हू मै. बाबा तो चले गए गोलोक पर पीछे छोड़ गए ढेर सारा रूपया . और जैसा की अक्सर होता है चेले एक दुसरे का सर फोड़ने लगे की कौन होगा बाबा का असली उत्तराधिकारी..नहीं नहीं आप ऐसा नहीं सोचो की बाबा के ज्ञान के अधिकार की बात हो रही है. यहाँ पर बाबा के धन की बात हो रही है. हालाकि बाबा 'भगवान्' थे वो बोल के भी गए है की मै फिर आऊंगा. पता नहीं ये सहानुभूति के शब्द है या चेतावनी के. पर अभी अभी बाबा का जब घर खोला गया तो पता चला की बाबा के घर में ११.५६ करोड़ रुपये और ९८ किलो सोना और ३०७ किलो चाँदी थी. मै तहरा मंद बुधि आदमी. अब कितना होगा सब मिला के नहीं बता सकता पर इतना जरूर मालूम है की ''गोंड' को भी 'गोल्ड' की जरूरत होती है.
             तीसरे वाले थोड़े भारीभरकम बाबा है. नाम है चंद्रास्वामी. कुछ सालो पहले ये त्रिदेव के रूप में आया करते थे. इनके सहभागी थे- हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री श्री नरसिम्हा राव जी और लखु भाई पाठक. बाबा कुछ सालो से भुगत हो गए थे . चुकी बाबा लोगो का मौसम चल रहा है इस लिए ये बाबा भी आ गए है बाज़ार में.  सर्वोच्च न्यायालय ने बाबा चंद्रास्वामी से कहा है की वो ९ करोड की धनराशि हर्जाने के रूप में जमा करे. कहते है बड़े लोगो की सब बड़ी चीज़ होती है, चाहे वो अच्छाई हो या बुराई . ये बड़ी बात ही बाबा का हर्जाना भी इतना बड़ा है .
  चौथे बाबा और बड़े बेचारे किस्म के बाबा का नाम है स्वामी निगमानंद . मै बेचारा इसलिए कहा कहा की बाबा के चेलो में कोई प्रधानमंत्री या मंत्री का नाम नहीं था नहीं तो बाबा ऐसे असमय सदगति को प्राप्त नहीं होते है . बाबा गंगा मैया को बचाने के लिए आमरण अनशन पे बैठे हुए थे. और भूखे ही मर गए . कौन कहता है की 'जाती न पूछो साधू की '?? अगर बाबा सच में उची जाती (??) के होते तो क्या ऐसे ही व्यर्थ मारे जाते?? क्यों बाबा के चेले अगर मंत्री संत्री होते तो बाबा के संघर्ष को लोग उनके मरने के बाद जानते ?? या बाबा के मरने के बाद भी ऐसे ही चुप्पी रहती जैसे की अभी है?? कभी नहीं. तब हमारा सारा 'सिस्टम'  हिल गया होता. क्यों की बाबा के पास 'वोट' होते और इसी कारण बाबा के आस मंत्री संत्री भी होते. एक साधू मर तो मर गया पर भारत बर्ष के सामने हमारे समाज के सामने प्रश्न उतने ही ज्वलंत है. अखित हमारा समाज  एक मनुष्य का मूल्य कैसे निर्धारित करता है???     . 

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                                                                 जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करुणा कितने संदेश, पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार, अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार, जो तुम आ जाते एक बार

Jo tum aa jate ek bar
Kitni karuna kitne sandesh, Path me bichh jate ban jate parag
Gata prano ka tar tar, Anurag bhara unmad rag
Aansu lete we pad pakhar, Jo tum aa jate ek bar


हँस उठते पल में आर्द्र नयन, धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत, लुट जाता चिर-संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार, जो तुम आ जाते एक बार



Hansh uthte pal me we aardra nayan, Dhul jata hotho se vishad
Chha jata jeevan me vasant, Lut jata chir sanchit chirag
Aankhe deti sarvaswa var, Jo tum aa jate ek bar


अन्ना हजारे और बाबा रामदेव से भय क्यों ?? Who is afraid of baba anna hajaare and raamdev??

हिटलर की एक प्रसिद्ध कथन है 
 तुम एक बड़ा झूठ बोलो, और उसे बार बार बोलो. लोग उसपे बिस्वाश करना शुरू कर देंगे 
और ये काम और भी आसान हो जाता है जब आपके सरकारी मशीनरी हो जो आपके इस झूठ को जनता के सामने बार बार लाये, बार बार दोहराए . कुछ इन्ही बातो पे शायद हमारी सरकार बिस्वाश करना शुरू क्रर  दी है. सरकार अब समझ गयी है की लाठी से काम नहीं चलने वाला है. संभवतः सरकार को आगे से ही यह सच्चाई पता थी. लाठी तो सिर्फ इसलिए चली थी की बाबा और उनके चेले दिल्ली  से भगाए जा सके. क्योकि दिल्ली उनको ज्यादा 'कवरेज़ ' देने वाली थी और सरकार को ज्यादा परेशानी. इसलिए सरकार बोली बाबा आप हरिद्वार में  भूखे  बैठो और दिल्ली में हमें हमारे गोरखधंधे को चलाने दो. 
   झूठ प्रचार में सबसे ज्यादा सक्रिय है हमारे दिग्विजय सिंह जी और कपिल सिब्बल साहब. दोनों ने अपने मंत्रित्व काल में कितना काम किया है ये सब जानते है.  दिग्गी राजा को अचानक ज्ञान प्राप्त हुआ की रामदेव ठग है. मुझे बहुत आश्चर्य हुआ की उसी ठग की अगवानी में भारत सरकार के ढेर सारे मंत्री अगवानी में हवाई अड्डे कैसे पहुच गए?? ये ज्ञान उन्हें कैसे प्राप्त हुआ ये जानने लायक है. और आखिर में यूपीए सरकार के मंत्रियों, सांसदों ने भ्रष्टाचार के जो उच्च मापदंड स्थापित किए हैं, उनके हिसाब से बाबा के कुछ करोड़ को देखते हुए, बाबा को ठग नहीं, फ़कत एक जेबकतरा जैसा कुछ कहा जा सकता है। सबसे अजीब बात है की सरकार की तरफ से कोई भी बात मुद्दे पे नहीं हुई है अभीतक. एक बार भी किसी ने नहीं कहा की इस मुद्दे को हम ऐसे हल करेंगे. क्योकि हमारी सरकार के पास इसका कोई हल नहीं है और नहीं हल करने की इच्छा शक्ति. अचानक दिग्गी राजा को एक और ज्ञान प्राप्त हुआ की आचार्य बाल कृष्ण एक अपराधी है और उसके पास कई देशो के पासपोर्ट है . अगर ये सच भी है तो आप जानते हुए चुप क्यों रहे है सरकार ने कोई कार्यबाई क्यों नहीं की?? बाबा रामदेव ढोंगी हो गए क्योकि उनके पास ११०० करोड़ रुपये है!! पैसे होने में कब बुराई थी?? और ऐसे पैसे में तो कोई भी बुराई नहीं है जो जनता के लिए ही जा रहे हो?? और मुझे नहीं लगता की ये पैसे कलमाड़ी और कम्पनी के तरीके से कमाए गए है. दरअसल बाबा रामदेव एक योग शिक्षक है. और उनके जो भो अनुयायी है वो किसी बिश्वाश के कारण नहीं है. वो बाबा रामदेव को इसलिए पसंद नहीं करते की वो कभी चमत्कार करते है. वो इसलिए नहीं रामदेव में बिस्वास करते की उनके मुह से शिवलिंग निकालता है. लोग रामदेव को इसलिए बिश्वास करते है की उनके बताये रास्ते से लोगो को लाभ होता है. पर सरकार जनता की कमजोरियों को जानती है. सरकार जानती है की जनता सब समय बाबाओ को नंगे बुखे देखना चाहती है. ऐसे में ११०० करोड़ वाले बाबा के प्रति जनता के मन में संदेह पैदा करना बहुत ही आसान होगा अपेक्षाकृत काले पैसे को लाने के. इसलिए सरकार सब समय कोशिश कर रही है ध्यान मुद्दे से हते. इसके लिए आप किसी को ठग बोलो, चोर बोलो, चाहे कुछ बोलो पर बार बार बोलो. आखिर में वही काम में आएगा
  अंत में, शोले में १०-१० कोस तक जब कोई बच्चा रोता था तब माँ कहती थी बेटा सो जा नहीं तो गब्बर आ जाएगा और भारत में जब भी कोई पते की बात करता है तो हमारी सरकार कहती है जनता से आप लोग अपना कान बंद कर ले ये आर एस एस का आदमी है. ऐसे ही दिन पर दिन अपने बच्चे को माँ सुलाती रही है और ऐसे ही बरसो पे बरसो सरकार सही बातो से हम भटकाती रही है. इसलिए सोचे और फिर सोचे......और बात मुद्दे पे ही हो तो काम की है नहीं तो बस 'टाइम-पास' है


Sorry! I am not sad about makbool fida husain क्षमा करे! मै मकबूल फ़िदा हुसैन के लिए दुखी नहीं हु

मुझे बहुत दुःख होता है बताते हुए की मै 'मुस्लिम' चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसैन का मुझे कोई दुःख नहीं है. यहाँ पर मैंने मुस्लिम शब्द का प्रयोग जान बुझ के किया है क्योकि उनका कोई भी काम इस दायरे से बाहर नहीं निकल पाया. हमारे भारतीय (क्या सच में थे वो ?) "पिकासो" कभी भी इस धर्म के शीशे से बाहर नहीं निकल पाए.  हालाकि मुझे चित्रकारी का कोई ज्ञान नहीं है पर इनको देख कर अवश्य जान गया की पैसा कितनी बड़ी चीज होती है. अगर आपका का काम बिकता है तो कोई अंतर नहीं पड़ता की आप दूसरो की भावनाओ का कोई सम्मान करते है की नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता की आप दूसरो के साथ कितना बुरा बर्ताव कर सकते है. 
मकबूल साहब मरे तो अचानक देखा हमारे संमाज के प्रतिनिधि अचानक दुखी हो गए. सबके सब गहरे शोक में डूब गए , एक अपूर्णीय क्षति हो गयी भारतीय कला की (कम से कम सब लोग ऐसा ही स्वांग रचा रहे थे ). फिर मै सोचना शुरू किया की प्रथम बार कब मैंने मकबूल साहब का नाम सुना था ! फिर याद आया की मै उनकी उनके चित्रकारी के लिए नहीं 'हम आपके है कौन' की माधुरी दीक्षित के लिए जानता हु. फिर मकबूल साहब इतने दीवाने हुए की उनका नाम हुआ "माधुरी फ़िदा हुसैन ". बड़े लोग के सब काम बड़े. अगर मै उस उम्र में कुछ वैसा करू तो घोर पाप होगा पर मकबूल साहब करे तो वो उनकी 'प्रेरणा' होगी. शाहजहा ने मुमताज के लिए ताजमहल बनाया और मकबूल साहब ने गजगामिनी. अब तक तो ठीक था पर हुसैन साहब का अगला काम इससे से भी अछा निकला. हुसैन साहब ने हिन्दुओ के देवी देवताओ के कुछ चित्र बनाये . कुछ लोगो ने इसका बिरोध किया. वो बिरोध इतना ही जोरदार था की हुसैन साहब को नागरिकता  छोड़नी पड़ी भारत की. ऐसे में कुछ  भाइयो ने दूकान चलानी शुरू की. हुसैन साहब का ये काम उन्हें बोलने की स्वतन्त्रता लगी . उन्हें लगा की हुसैन साहब पर किया हुआ हमला लोकतंत्र पर हमला है. पर इन सब के बावजूद हुसैन साहब चुप रहे. ये वाही हुसैन साहब है जिन्होंने एक फिल्म बनाई थे "मीनाक्षी:डी टेल ऑफ़ थ्री सिटिज " .. ये उन दिनों की बात है जब हुसैन साहब तब्बू के दीवाने थे. मीनाक्षी:डी टेल ऑफ़ थ्री सिटिजके एक कव्वाली "नूर उन अला नूर " पर कुछ मुस्लिम संमाज के प्रतिनिधियों ने आपत्ति की और फिल्म अपने तीसरे दिन में ही सिनेमाघरों से हटा ली गयी. मुझे आज तक ये नहीं समझ में आया की हुसैन साहब इतने उदार हिन्दू भावनाओं के प्रति  क्यों नहीं हो सके. और अगर लार विल्क्स की इसलिए निंदा की जा सकती है की उन्होंने मोहम्मद साहब को गलत तरीके से प्रदर्शित किया है तो मकबूल फ़िदा हुसैन अनिन्दनीय कैसे हो सकते है???
हुसैन साहब ने एक और चित्र बनाया था महात्मा  गाँधी , कार्ल  मार्क्स , अल्बर्ट  इन्स्तेइन  और हिटलर का. सारे लोग कपडे में और हिटलर भाई नंगे . तर्क था की वो हिटलर को घृणा करते है इसलिए उसे नंगा दिखाया है. अब आप खुद भी सोच सकते है की हुसैन साहब ने हिन्दुओ के आश्थाओ से कितना प्रेम करते है की सारी उम्र उनको नंगा दिखाने में कटा दी. दादू मरे नहीं की लोगो ने दूकान फिर खोल दी. इस बार मांग दी उनका क्रिया कर्म तो भारत की पवित्र भूमि में ही होना चाहिए  जैसे उनके शव के राख के बिना कितना अधुरा है भारत बर्ष . आश्चर्य होता है की ये वाही सरकार है और ये वाही लोग है जो आधी रात को बूढ़े बचो औरतो पे लाठी बरसाते है. मुझे आश्चर्य होता की भारत का संबिधान सबके लिए एक है और सब एक अधिकार रखते है !!!!!

सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं

मै बहुत छोटे दिमाग वाला आदमी हु जो बहुत कम दुरी की बाते सोचता है....या यु कहे की बहुत कम बार सोचने का दुस्साहस करता है. मै पहले भी कह चूका हु की भ्रस्ताचार हमारे बिचारो में घुस  चूका है. अब हम भ्रस्ताचार की जीवन शैली जी रहे है इसमे आप  धरना करके और उपवास करके कुछ नहीं कर  सकते . इसमें आप की सरकार बिशेष का भी दोष नहीं दे सकते. ये सब हमारे जीवनशैली और दृष्टिकोण का दोष है. हम सभी चिल्ला रहे है इसलिए नहीं की कोई क्यों लुट रहा है देश को बल्कि की इसलिए की हम इस लूट के हिस्सा हम क्यों नहीं है ? ऐसे में धरना या उपवास या फिर कोई भी नियम-कानून कुछ नहीं कर सकता क्योकि भ्रस्ताचार का बिनाश हमसे शुरू होता है किसी सरकार से नहीं. तो होना तो ये चाहिए था की रामदेव बाबा या अन्ना बाबा पहले हमारे जीवनशैली में सुधार लाते फिर सारी चीज़े अपने आप बदल जाती. कबीर बाबा हजारो बर्ष आगे ही कह गए है की . बड़ा अजीब लगता है की सरकार के तारणहार बाबा रामदेव की संपत्ति पर प्रश्न उठाए जा रहे है जब की उनको पता है की बाबा सारे तरह के जाचो में सहयोग देने को तैयार है पर यही तारणहार श्री करुणनिधि जी के पूरा खानदान द्वारा किये गए लूट को लेकर काम में तेल दाल लेते है. बाह रे मेरी प्यारी, इमानदार जनता की सरकार !! अगर किसी लोकतान्त्रिक सर्कार का किसी शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बिरुद्ध यही ब्यवहार ठीक है तो फिर जलियावाला बाग़ में जो हुआ था उसमे बुरा क्या था ?? 
अन्दर का पट खोल के, बाहर का पट खोल

खैर आपने अपने तरीके है और अपने अपने धंधे. पर मुझे इसका अफसोश नहीं है की हमारे बाबाओ ने क्या किया अफसोश इस बात का है की हमारे सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े पुरोधाओ ने क्या किया?? रात को १२ बजे आप हजारो के बीद पर लाठी बरसाते है ..वो भी ऐसी भीड़ जो आपसे इस बात की शांति पूर्ण ढंग से मांग कर रही है की भारत बर्ष का काला धन जो बाहर पडा हुआ है उसे आप वापस लाइए. इस मांग में मुझे तो कोई बुराई नजर नहीं आयी. इसके बदले में हमारी सरकार ने क्या किया?? पहले तो अपने हनुमानो को भेजा की जाओ उनको समझाओ . जब बात नहीं बनी तो फिर ब्याक्तिगत गाली गलुज पे उतर आये.और जब कोई भी शस्त्र जब काम नहीं किया तो लाठी लेके दौड़े. मुझे वास्तव में आश्चर्य होता है की ये वाही लोग है जो नक्सलवादियो, काश्मीर और उत्तर पूर्व के आतंकवादियों के पैरो पे गिडगिडाए  फिरते है की शास्त्र छोड़ो आओ हम बाते करते है तुम्हारी मांगो को लेकर. मै अभी तक नहीं समझ पाया की सरकार इतना अधीर क्यों हो गयी या फिर इतना लाचार क्यों हो गयी की उसको रात के १२ बजे लाठी उठाना पडा?? अखित सरकार को किसका भय था ?? और  इन सबमे खतरनाक है हमरे परम प्रिय मनमोहन सिंह और हमारे युवराज राहुल गाँधी की चुप्पी. अभी कुछ दिन पहले जिस तरह से यूराज ने नॉएडा के गाव में हुई घटनाओं पर तत्परता दिखाई थी अगर वाही तत्परता यहाँ दिखाते तो कितना अच्छा होता. कितना अच्छा होता की हमारे बिद्वान प्रधान मंत्री ये जनता को बतला सकते की आधी रात को ये करवाई इतनी अनिवार्य क्यों हो गयी थी. और ये अनिवार्यता और तत्परता हमारे आतंकवादी संगठनो के बिरुद्ध क्यों नहीं दिखाती सरकार ?? अगर बाबा रामदेव ठग है तो सरकार एक ठग से इतनी डरी हुई क्यों है ??